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कृति उपरथी प्रत माहिती पे. विशेष- वचमां ७ पत्र अने पाछलां पण पत्रो नथी. तेनी नोंध साथेज छे.
डीवीडी-३४/५२ बन्धस्वामित्व प्राचीन तृतीय कर्मग्रन्थ-(सं.)वृत्ति (प्राचीन तृतीय कर्मग्रन्थ-(सं.)वृत्ति)
आचार्य-हरिभद्रसूरि[बृहद्गच्छीय], सं., गद्य, रचना सं. विक्रम ११७२, ग्रं.५६०, पातासंघवी ११७-२, पृ. ४८, बन्धस्वामित्व सटीक, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ७-१४-१६-२२-२४-३० नथी. ४८ पत्रनो टुकडो छे.
डीवीडी-३४/५२ पातासंघवी ११९-२, पृ. ४८, बन्धस्वामित्व प्राचीन कर्मग्रन्थ सटीक, संपूर्ण प्रत विशेष- पाटण ताडपत्रीय केटलॉग में तथा माइक्रोफिल्म रजिष्टर में इस कृति का उल्लेख नहीं है.
कुल झे.पृष्ठ-१४ पातासंघवी १२७-२- पे.क्र. २, पृ. १५०, षडशीति सटीक आदि, वि-१३३२, संपूर्ण पे. विशेष- वचमां ७ पत्र अने पाछलां पण पत्रो नथी. तेनी नोंध साथेज छे.
डीवीडी-३४/५२ बन्धुराजकथानक-प्राणातिपातविरतिप्रथमातिचारविपाके (प्राणातिपातविरतिप्रथमातिचारविपाके-बन्धुराजकथानक)
प्रा., पद्य, गा.७७, पातासंघवीजीर्ण ८८ - पे.क्र.८, पृ. ?, उपदेशमाला, पार्श्वनाथाष्टक आदि अनेक ग्रन्थों के त्रुटक पत्र, त्रुटक
पे. विशेष- झे.पत्र २४-३३ अन्तर्गत है. प्रत विशेष- नकामी., झेरोक्ष पत्र ८७ बेवडाएल छे.
कुल झे.पृष्ठ-९०, डीवीडी-५८/६० बन्धोदयसत्ताप्रकरण
गणि-विजयविमल गणि, प्रा., पद्य, गा.२४,
पाकाहेम १०९९४, पृ. ५, बन्धोदयसत्ताप्रकरण सावचूरि त्रिपाठ, वि-१७मी, संपूर्ण बन्धोदयसत्ताप्रकरण-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, ग्रं.४११,
पाकाहेम १०९९४, पृ. ५, बन्धोदयसत्ताप्रकरण सावचूरि त्रिपाठ, वि-१७मी, संपूर्ण बन्धोदयसत्ताप्रकरण-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, ग्रं.४११,
पाकाहेम १०९९४, पृ. ५, बन्धोदयसत्ताप्रकरण सावचूरि त्रिपाठ, वि-१७मी, संपूर्ण बप्पभट्टीकथा
प्रा., पद्य, गा.६८५, पातासंघवी १३६-२- पे.क्र.४, पृ. ४९-१०५, सिद्धसेनदिवाकरचरित्र आदि, वि-१२९१, संपूर्ण पे. विशेष- पत्र ५१-५७-७६-७७-७८-१०४ नथी.
डीवीडी-३४/५३ बम्भणवाडामण्डन महावीरजिनस्तवन जुओ - महावीरस्तवन बम्भणवाडामण्डन, मुनि-कमलकलशसूरि-शिष्य,
अपभ्रंश,मारुगूर्जर, गा.२१ बलिनरेन्द्रकथा भवभावनावृत्तिगता जुओ - भवभावनाप्रकरणनी (सं.)वृत्तिनोहिस्सो-बलिनरेन्द्रकथा, आचार्य-हेमचन्द्रसूरि
मलधारी, संस्कृत बलिनरेन्द्राख्यान
प्रा.,सं., आदि वाक्यः बलिरिद्धिरूवजोवणपहुत्तं... भांका ९७, पृ. ४२, बलिनरेन्द्राख्यान, वि-१४९८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्रक्रम-४-४३७.
कुल झे.पृष्ठ-२८, डीवीडी-८४ बहुतीर्थस्तवन (तीर्थस्तवन)
सं., पद्य, श्लोक५, आदि वाक्यः कुल्पपाके युगादीशं...
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