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कृति उपरथी प्रत माहिती प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५०A-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ पृथ्वीचन्द्रकुमाररास
मुनि-देवचन्द्र, मारुगूर्जर, पद्य, रचना सं. विक्रम १६९६, गा.१७४, पाकाहेम ५९७०, पृ. १२, पृथ्वीचन्द्रकुमाररास, वि-१९मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-९ पाकाहेम १०२३५, पृ. १२, पृथ्वीचन्द्रकुमाररास, वि-१७५६, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१३ पृथ्वीचन्द्रराजर्षिचरित्र
उपाध्याय-जयसागर वाचनाचार्य[खरतरगच्छ], गुरु-आचार्य-जिनराजसूरि[खरतरगच्छ], सं., पद्य, रचना सं. विक्रम
१५०३अध्याय११, ग्रं.२६५४, आदि वाक्यः श्रीवीरचरणाम्भोज श्रयामि श्रीनिकेतनम्... पुप्रे ४२८, पृ. १९९, पृथ्वीचन्द्रचरित्र, संपूर्ण प्रत विशेष- विमलकीर्ति गणि के द्वारा लिखी गयी प्रत. अन्त में ग्रन्थाग्र ३२६४ का भी उल्लेख मिलता है.
कुल झे.पृष्ठ-१९९ पेथडकारितप्रासादसम्बद्ध युगादिजिनस्तवन जुओ - युगादिजिनस्तवन पेथडकारितप्रासादसम्बद्ध#, आचार्य-सोमतिलकसूरि,
संस्कृत, का.३२ पैंसठ द्वार मार्गणास्थानकगत जीवस्थानविवरण
प्रा., पद्य, आदि वाक्यः विप्फरियविमलकेवल निन्नासिय... पातासंघवीजीर्ण ४६- पे.क्र. १९, पृ. १२४-?, सङ्ग्रहणी आदि, वि-१२८६, अपूर्ण पे. विशेष- अपूर्ण. गाथा-७ तक मिलती है. यह कृति झेरोक्ष पत्र ३६ पर है. इसका उल्लेख सूचीपत्र में
नहीं है. प्रत विशेष- पेटांकों का क्रम अव्यवस्थित है. दो प्रतों के पत्र इसमें सम्मिलित है. संवत् १३०९ पालनपुर में
संघ के समक्ष आचार्य पदमदेवसूरि द्वारा साध्वी नलिनप्रभा को पढने हेतु यह प्रत दी गयी. प्रतिलेखन वर्ष मात्र ८६ वर्षे इस तरह लिखा हुआ है. अतः११८६ अथवा १२८६ प्रतिलेखन वर्ष होना संभव है. पेटांक में उल्लिखित पत्रवाले कोष्ठक के पत्रांक ताडपत्रीय है.
कुल झे.पृष्ठ-८०, डीवीडी-५७/६० पोलवालसङ्घप्रशस्ति
सं., पद्य, आदि वाक्यः ...पोलवालः कनकगिरि महाकल्पवृक्षः... पाताहेसं ५७- पे.क्र.५, पृ. १६६आ, शान्तिनाथचरित्र महाकाव्य आदि, वि-१३८४, संपूर्ण
पे. विशेष- परचूरन अन्य दूसरे भी संबंधित श्लोक है. झेरोक्ष पत्र-१६५-१६६. प्रत विशेष- विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रति सुन्दर लिपि, विशेष टिप्पण, पदच्छेद, संधिसूचक आदि
लाक्षणिकताओं से युक्त है.
कुल झे.पृष्ठ-१७०, डीवीडी-६/१५ पोसहविधिप्रकरण (पौषधविधिप्रकरण)
आचार्य-देवभद्रसूरि मलधारी[हर्षपुरगच्छीय], प्रा., पद्य, गा.११८, पातासंघवी ६१-२- पे.क्र. ७, पृ. १५०-१६५, उपदेशमाला आदि, संपूर्ण
डीवीडी-३०/४९ पौषधग्रहणविधि प्रा., आदि वाक्यः मुंहपोत्तिं पडिलहेऊण खमा इच्छाकारेण सन्दिसह पोसहु सन्दिसावह...
कृ.विः अंतिमवाक्य-तस्स भन्ते पडिक्कमामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि. भांता ७०- पे.क्र. ४२, पृ. ४७A, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण
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