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कृति उपरथी प्रत माहिती कुल झे.पृष्ठ-२०, डीवीडी-८४ पश्चाताप
प्रा., आदि वाक्यः हा हा दुटु कयं दुठु जेण पाव कम्मुणा... पातासंघवी ५९-२- पे.क्र. २०, पृ.७७-८१, मोक्षोपदेशपञ्चाशत् आदि, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२८, डीवीडी-२९/४८ पश्चात्तापकुलक जुओ - उपदेशकुलक, आचार्य-जिनप्रभसूरि, अपभ्रंश, गा.३२ पाइयटीका जुओ - उत्तराध्ययनसूत्र-(सं.)बृहद्वृत्ति, आचार्य-शान्तिसूरि वादिवेताल, संस्कृत,प्राकृत, श्लोक१३३४५ पाइयलच्छीनाममाला (पाययलच्छीनाममाला)
कवि-धनपाल, प्रा., पद्य, गा.२८०, आदि वाक्यः नमिऊण परमपुरिसं पुरिसोत्तम नाहिसम्भवं देवं... अताका ४७७- पे.क्र. ४, पृ. १६३A-१७३B, अनेकार्थसङ्ग्रह आदि नाममालाओ (भाग-२), संपूर्ण
पे. नाम- पाययलच्छिनाममाला, पे. विशेष- संपूर्ण. प्रत विशेष- पृष्ठ माहिती नथी. पत्रों को क्रमबद्ध किये बिना ही झेरोक्ष किया हुआ था अतः पाठानुसन्धान
व उपलब्ध पत्रों को क्रम में करने हेतु झेरोक्ष पत्रांक सुधारा गया है.
कुल झे.पृष्ठ-६५, डीवीडी-१०३/१०४ पाक्षिक क्षामणक जुओ - क्षामणकसूत्र, प्राकृत पाक्षिक खामणा जुओ - क्षामणकसूत्र, प्राकृत पाक्षिक प्रतिक्रमणविचार
सं.,प्रा., गद्य, पाकाहेम १९५८- पे.क्र. २, पृ. २, मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखनाधिकार तथा पाक्षिक प्रतिक्रमणविचार, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६ पाक्षिकअतिचार जुओ - साधुपाक्षिकअतिचार, मारुगूर्जर पाक्षिकविचार
सं., गद्य, पाकाहेम १०७७९- पे.क्र. १, पृ. १-४, पाक्षिकविचार आदि, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-५ पाक्षिकविषमपदपर्यायमञ्जरी जुओ - पाक्षिकसूत्र-(सं.)पाक्षिकविषमपदपर्यायमञ्जरी टीका, संस्कृत पाक्षिकसप्ततिका जुओ - आवश्यकसप्ततिका, आचार्य-मुनिचन्द्रसूरि, प्राकृत, गा.७० पाक्षिकसूत्र
प्रा., संयुक्त प+ग, ग्रं.३५०, आदि वाक्यः (१) तित्थङ्करे य तित्थे अतित्थसिद्धे य तित्थसिद्धे य...(२)
अन्नाणमोहदलणी जणणी सुयनाणभवियलोयस्स।...(३) अण्णाणमोहदलणी जणणी वरनाणभवियलोयस्स।... पाताखेत १७-१- पे.क्र.२, पृ. ५३-७५, दशवैकालिक अने पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण
डीवीडी-६१/६३ पातासंघवीजीर्ण ४५- पे.क्र. २, पृ. ४१-५५, सङ्ग्रहणी आदि, त्रुटक प्रत विशेष- त्रुटक-जीर्ण-नकामी.
डीवीडी-५७/६० पातासंघवीजीर्ण ६४-पे.क्र. ३, पृ. ?, भवभावना आदि, वि-११९१, संपूर्ण
पे. विशेष- त्रुटित. प्रत विशेष- नकामी.
डीवीडी-५८/६० पातासंघवीजीर्ण ७६- पे.क्र. २, पृ. ६०-८५, दशवैकालिकसूत्र आदि, त्रुटक
डीवीडी-५८/६० पातासंघवी १६६- पे.क्र.७, पृ. १८-२५, चैत्यवन्दन आदि, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रारंभना १-८ पत्र बढते पत्ररूपे लीधा छे. (८+१९४)
डीवीडी-३६/५४
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