________________
कृति उपरथी प्रत माहिती प्रत विशेष- प्रति पाणीथी भींजायेली छे. न्यायकुसुमाञ्जलिप्रकरण-(सं.)परिमल टीका (परिमल टीका)
उपाध्याय-श्रीदिवाकर, सं., गद्य, पाकाहेम ६६८५, पृ. १६, न्यायकुसुमाञ्जलिपरिमल प्रथमस्तबक, वि-१५मी, प्रतिपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१६ न्यायकुसुमाञ्जलिप्रकरण-(सं.)टीका (सङ्केत(?))
जैनेतर-वामेश्वरध्वज, सं., गद्य, आदि वाक्यः यद् योगिमुख्यैरपि नैव गम्यं यत् कारणं... पातासंघवी १९१-२, पृ. १५५, न्यायकुसुमाञ्जलिटीका, संपूर्ण प्रत विशेष- पहेलां ४-५ पत्रो बगडेलां छे.
डीवीडी-३७/५४ न्यायकुसुमाञ्जलिप्रकरण-(सं.)टीका (सङ्केत(?))
जैनेतर-वामेश्वरध्वज, सं., गद्य, आदि वाक्यः यद् योगिमुख्यैरपि नैव गम्यं यत् कारणं... पातासंघवी १९१-२, पृ. १५५, न्यायकुसुमाञ्जलिटीका, संपूर्ण प्रत विशेष- पहेलां ४-५ पत्रो बगडेलां छे.
डीवीडी-३७/५४ न्यायकुसुमाञ्जलिप्रकरण-(सं.)परिमल टीका (परिमल टीका)
उपाध्याय-श्रीदिवाकर, सं., गद्य, पाकाहेम ६६८५, पृ. १६, न्यायकुसुमाञ्जलिपरिमल प्रथमस्तबक, वि-१५मी, प्रतिपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१६ न्यायकुसुमोद्गमोदय व्याख्या जुओ - वैशेषिकदर्शन-(सं.)पदार्थधर्मसङ्ग्रह टीकानी (सं.)न्यायकन्दली टीकानी
(सं.)न्यायकुसुमोद्गमोदयव्याख्या, अज्ञात-वोम्मीदेव, संस्कृत न्यायग्रन्थ जुओ - दार्शनिकग्रन्थ-अज्ञात, संस्कृत न्यायग्रन्थ
सं., गद्य,
पाकाहेम ७३२१, पृ. १०९, न्यायग्रन्थ अपूर्ण, वि-१५वी, अपूर्ण न्यायग्रन्थ श्रीकण्ठीयटिप्पण जुओ - न्यायटिप्पनक श्रीकण्ठीय, जैनेतर-श्रीकण्ठ पण्डित, संस्कृत न्यायटिप्पनक श्रीकण्ठीय (श्रीकण्ठीय न्यायटिप्पनक (न्यायग्रन्थ)). (न्यायग्रन्थ श्रीकण्ठीयटिप्पण)
जैनेतर-श्रीकण्ठ पण्डित, सं., गद्य, आदि वाक्यः संसारिचेतनवर्ग इति संसारिग्रहणेन...
कृ.विः कया ग्रन्थनु टिप्पणक. तालाद ३१२, पृ. ६४, श्रीकण्ठीयटिप्पण, वि-१४९२, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६४, डीवीडी-९३/९५ न्यायतत्त्वचिन्तामणि जुओ - तत्त्वचिन्तामणी, जैनेतर-गङ्गेश्वर मिश्र, संस्कृत, ग्रं.२८११ न्यायतत्त्वविवेक
जैनेतर-उदयकर, सं., पाकाहेम ६६७८, पृ. २२, न्यायतत्त्वविवेक, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२३ न्यायतात्पर्यदीपिका टीका जुओ - न्यायसारप्रकरण-(सं.)न्यायतात्पर्यदीपिका टीका, आचार्य-जयसिंहसूरि, संस्कृत न्यायतात्पर्यपरिशुद्धि (तात्पर्यपरिशुद्धि)
आचार्य-उदयनाचार्य, सं., गद्य, आदि वाक्यः मातः सरस्वती पुनः... तालाद ३११, पृ. २१५, तात्पर्यपरिशुद्धिवृत्ति, वि-१५मी, संपूर्ण प्रत विशेष- १७६ नंबर- पार्नु नथी.
कुल झे.पृष्ठ-१२४, डीवीडी-९३/९५ न्यायतात्पर्यपरिशुद्धि-(सं.)वृत्ति
सं., गद्य, तालाद ३११, पृ. २१५, तात्पर्यपरिशुद्धिवृत्ति, वि-१५मी, संपूर्ण
434