SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कृति उपरथी प्रत माहिती कुल झे.पृष्ठ-२४ पाकाहेम १५७- पे.क्र. १, पृ. १-१७, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र व अनुत्तरौपपातिकसूत्र, वि-१६१८, संपूर्ण पे. विशेष- ग्रन्थाग्र-७२५. ___ कुल झे.पृष्ठ-२१ पाकाहेम ७४५०, पृ. २५, अन्तकृद्दशासूत्र, वि-१६५०, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-८२५. पाकाहेम १०००४, पृ. १५, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रथम पत्रमा अन्धकवृष्णि राजानी धारणी राणीनो पुत्र गौतम भार्याओनो त्याग करीने भगवान पासे प्रव्रज्या ले छे ते भाव सूचवतुं चित्र छे. कुल झे.पृष्ठ-१५ पाकाहेम १०१३२, पृ. १५, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१६ पाकाहेम १०४१४, पृ. १९, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, वि-१५५४, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-७९०. प्रति चोंटी जवाथी अक्षरो उखडी गया छे. कुल झे.पृष्ठ-२० पाकाहेम १०५३९, पृ. ३५, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३५ पाकाहेम १०५४०, पृ. २२, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-७९०. कुल झे.पृष्ठ-२२ पाकाभाभा १०, पृ. २३, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, वि-१६वी, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रथम पत्रे समवसरण- चित्र छे, बीजा पत्रे चतुर्विध संघD चित्र छे. पुप्रे ४५५-२, पृ. ५०, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-५० अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-(सं.)अभयदेवीय वृत्ति (अभयदेवीय वृत्ति) आचार्य-अभयदेवसूरि, सं., गद्य, ग्रं.१३५६, आदि वाक्यः अथान्तकृद्दशासु किमपि विव्रियते।... पातासंघवी ३३-१- पे.क्र. ७, पृ. १०५-११२, उपासकदशाङ्ग आदि, वि-१४५५, संपूर्ण पे. विशेष- ग्रन्थाग्र-१३००. सारी छे., प्रत विशेष- विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. डीवीडी-२५/४३ पाताहेसं ६- पे.क्र. ५, पृ. १५०B-१५९B, पञ्चाङ्गीसूत्रटीका, संपूर्ण पे. नाम- अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र की टीका प्रत विशेष- मूल- पत्र-४७थी १२३, टीका- पत्र १२३थी २४०. पाकाहेम १५८- पे.क्र. १, पृ. १-८, अन्तकृद्दशाङ्गसूत्रवृत्ति व अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्रवृत्ति, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१२ पाकाहेम १०००७- पे.क्र. २, पृ. १७-२३, उपासकदशाङ्गसूत्रवृत्ति आदि, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- पेटांक-१ थी ३ ना श्लोक-१३००. प्रथम पत्रमा क्रमांक १०००३ना टिप्पणमां जणाव्या प्रमाणे भव्य चित्र छे. कुल झे.पृष्ठ-१०६ पाकाहेम १४९०६- पे.क्र. २, पृ. १५-१९, पञ्चाङ्गीवृत्ति, वि-१५३८, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रथम पृष्टमां समोवसरण- चित्र छे. अने १२ तथा४२मुं डबल छे. पाकाभाभा ८- पे.क्र. २, पृ. १७-२२, उपासकदशाङ्गवृत्ति, अन्तकृद्दशाङ्गवृत्ति व अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गवृत्ति, वि-१६वी, संपूर्ण
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy