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कृति उपरथी प्रत माहिती डीवीडी-१०३/१०४ द्वात्रिंशद्जीव परिमाण जुओ - बत्रीस जीव परिमाण, प्राकृत, गा.२८ द्वात्रिंशद्दलकमलबन्धमय महावीरस्तवन (महावीरस्तवन द्वात्रिंशद्दलकमलबन्धमय)
मुनि-उदयधर्म, सं., पद्य, श्लोक१८, पाकाहेम ११२९१, पृ. १, द्वात्रिंशद्दलकमलबन्धमय महावीरस्तवन, वि-२०मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२ द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका (सिद्धसेनीया द्वात्रिंशिका)
आचार्य-सिद्धसेन दिवाकर सूरि, सं., पद्यअध्याय३२वत्री, आदि वाक्यः स्वयम्भुवं
भूतसहस्रनेत्रमनेकमेकाक्षरभावलिङ्गम्... पातासंघवी १९८-२- पे.क्र.४, पृ. १-६, श्रावकधर्मविधिप्रकरण आदि, संपूर्ण पे. नाम- द्वात्रिंशिका सिद्धसेनीया प्रथम द्वात्रिंशिका, पे. विशेष- गायकवाडी नंबर २४१(४) आपेलो छे.,
पत्रना टुकडा थयेला छे., गायकवाडी केटलोगमां अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका-अपूर्ण हेमचन्द्रसूरिकृत लखेल छे.
डीवीडी-३८/५५ भांता ६७, पृ. ९०, द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका १ - २० द्वात्रिंशिका, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-८३०.
कुल झे.पृष्ठ-२२, डीवीडी-७२/८२ द्वात्रिंशद्वात्रिंशिकाप्रकरण
उपाध्याय-यशोविजयजी गणि[तपागच्छीय], सं., पद्यअध्याय३२बत्री, अताका ४७६, पृ. ?, द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका, संपूर्ण प्रत विशेष- पृष्ठ माहिती नथी
डीवीडी-१०३/१०४ पाकाहेम १४५८- पे.क्र. १, पृ. १-३४, द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिकाप्रकरण सह स्वोपज्ञ वृत्ति, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-९० द्वात्रिंशद्वात्रिंशिकाप्रकरण-(सं.)स्वोपज्ञ वृत्ति उपाध्याय-यशोविजयजी गणितपागच्छीय], सं., गद्य,
कृ.विः उभय श्लोक-५५००. पाकाहेम १४५८- पे.क्र. २, पृ. ३४-१३५, द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिकाप्रकरण सह स्वोपज्ञ वृत्ति, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-९० द्वात्रिंशद्वात्रिंशिकाप्रकरण-(सं.)स्वोपज्ञ वृत्ति उपाध्याय-यशोविजयजी गणि[तपागच्छीय], सं., गद्य,
कृ.विः उभय श्लोक-५५००. पाकाहेम १४५८ - पे.क्र. २, पृ. ३४-१३५, द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिकाप्रकरण सह स्वोपज्ञ वृत्ति, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-९० द्वात्रिंशल्लक्षण
सं., गद्य, आदि वाक्यः त्रिषु विपुलो गम्भीरस्त्रिष्वेव... भांता ७०- पे.क्र. ११३, पृ. १५००-१५०B, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमा पत्रांक २५०A-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ द्वादश व्रत स्वरूप जुओ - भृगुकच्छ वास्तव्य श्रावक द्वादश व्रत स्वरुप, द्वादशकुलक
गणि-जिनवल्लभ, प्रा., पद्य, गा.२३३, पाकाहेम ६५९७, पृ. ४२, द्वादशकुलक सटीक, वि-१५मी, संपूर्ण
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