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कृति उपरथी प्रत माहिती आचार्य-नेमिचन्द्रसूरि, गुरु-आचार्य-आम्रदेवसूरि, प्रा., पद्य, गा.१६, आदि वाक्यः नमिउं नेमिं एगाइ जीवसङ्ख... तालाद ३४९- पे.क्र. १, पृ. १B-२B, सिद्धन्तजुत्तीप्रकरणादि, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६, डीवीडी-९४/९६ जीवसत्तरी जुओ - जीवसप्तति, आचार्य-मुनिचन्द्रसूरि, प्राकृत, गा.७१ जीवसप्तति (जीवसत्तरी)
आचार्य-मुनिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, गा.७१, आदि वाक्यः उसभाइए जिणिन्दे पत्तेयमणन्तगुणनिही नमिउं... भांता ६९- पे.क्र. ९, पृ. ८०A-८७A, आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण आदि, संपूर्ण
पे. नाम- जीवसत्तरी प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.२-१३३.
कुल झे.पृष्ठ-४०, डीवीडी-७२/८२ जीवसमासप्रकरण
प्रा., पद्य, गा.२७०, आदि वाक्यः दस चोदस य जिणवरे चोद्दसगुणजाणए नमंसिता... पातासंघवी २००-२- पे.क्र. १, पृ. १-३५, जीवसमास आदि, वि-११९८, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ३५ पछी नथी.
डीवीडी-३८/५५ पाकाहेम ११८१, पृ. ९, जीवसमासप्रकरण, वि-१७मी, संपूर्ण प्रत विशेष- गाथा-२८३.
कुल झे.पृष्ठ-७ पाकाहेम ११८२, पृ. १४०, जीवसमासप्रकरण सटीक, वि-१७मी, संपूर्ण पाकाहेम ६९५१, पृ. ११७, जीवसमासप्रकरण बृहद्वृत्तिसहित, वि-१५२६, संपूर्ण प्रत विशेष- टीका ग्रन्थाग्र-६६२०.,
कुल झे.पृष्ठ-१४१ पाकाहेम ६९५२, पृ. १६, जीवसमासप्रकरण मूल, वि-१८मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१६ भांका २६६, पृ. १११, जीवसमासप्रकरण सह बृहद्वृत्ति, वि-१५११, संपूर्ण प्रत विशेष- गाथा-२८६. झेरोक्ष पत्रांक-१ ना मूलपत्र २B-३B नुं उन्धु झेरोक्ष थएल छे. झेरोक्ष पत्र १३-१४
नथी. झेरोक्ष पत्र ११-१२ डुप्लिकेट छे.
कुल झे.पृष्ठ-७२, डीवीडी-९० जीवसमासप्रकरण-(सं.)बृहद्वृत्ति
आचार्य-हेमचन्द्रसूरि मलधारी, सं., गद्य, ग्रं.६६२७, आदि वाक्यः यः स्फारकेवलकरैर्जगतां निहत्य हार्द तमः
प्रकटिताखिलतत्त्ववस्तुः।... पाकाहेम ११८२, पृ. १४०, जीवसमासप्रकरण सटीक, वि-१७मी, संपूर्ण पाकाहेम ६९५१, पृ. ११७, जीवसमासप्रकरण बृहद्वृत्तिसहित, वि-१५२६, संपूर्ण प्रत विशेष- टीका ग्रन्थाग्र-६६२०.,
कुल झे.पृष्ठ-१४१ भांका ८१, पृ. १५, जीवसमासप्रकरण टीका, संपूर्ण
डीवीडी-७३/८३ भांका २६६, पृ. १११, जीवसमासप्रकरण सह बृहद्वृत्ति, वि-१५११, संपूर्ण प्रत विशेष- गाथा-२८६. झेरोक्ष पत्रांक-१ ना मूलपत्र २B-३B नुं उन्धु झेरोक्ष थएल छे. झेरोक्ष पत्र १३-१४
नथी. झेरोक्ष पत्र ११-१२ डुप्लिकेट छे.
कुल झे.पृष्ठ-७२, डीवीडी-९० जीवसमासप्रकरण-(सं.)बृहद्वृत्ति
आचार्य-हेमचन्द्रसूरि मलधारी, सं., गद्य, ग्रं.६६२७, आदि वाक्यः यः स्फारकेवलकरैर्जगतां निहत्य हार्द तमः
प्रकटिताखिलतत्त्ववस्तुः।...
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