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कृति उपरथी प्रत माहिती कुल झे.पृष्ठ-७ जिनशतकमहाकाव्य-(सं.)टीका
सं., गद्य,
पाकाहेम १०७०४, पृ. ७, जिनशतकमहाकाव्य सटीक पञ्चपाठ, वि-१६मी, संपूर्ण जिनशतकमहाकाव्य-(सं.)पम्जिका टीका (पञ्जिका टीका)
मुनि-शाम्ब साधु, सं., पद्य, श्लोक१०२५, पाकाहेम ७२३४, पृ. १९, जिनशतक पञ्जिकासह त्रिपाठ, वि-१६४०, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१४ पाकाहेम ८६४१, पृ. २६, जिनशतक पञ्जिकासहित, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१८ जिनस्तव (स्तव)
आचार्य-हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, श्लोक२०, आदि वाक्यः त्वत्सेवानिरतांस्त्वर्पित... पातासंघवी ५६-२- पे.क्र.७, पृ. ?, उपदेशमाला आदि, वि-१३वी, संपूर्ण
पे. विशेष- यह कृति इस प्रत में उपलब्ध नहीं है. प्रत विशेष- पत्रांक अव्यवस्थित स्थिति में तथा उलटे क्रम में झेरोक्ष किया गया है.
कुल झे.पृष्ठ-२२, डीवीडी-२९/४८ जिनस्तव जुओ - देवाःप्रभोस्तोत्र, आचार्य-जयानन्दसूरि, संस्कृत, का.९ जिनस्तव जुओ - सर्वजिनस्तव, आचार्य-धर्मघोषसूरि, संस्कृत, श्लोक४ जिनस्तव जुओ - साधारणजिनस्तव, प्राकृत, गा.२१ जिनस्तव जुओ - साधारणजिनस्तव, आचार्य-मुनिसुन्दरसूरि, संस्कृत, श्लोक५ जिनस्तव - यमकालङ्कारमय जुओ - यमकालङ्कारमय जिनस्तव, मुनि-देवसुन्दरसूरि शिष्य, संस्कृत जिनस्तव रसवत्यादिनामगर्भित जुओ - जिनस्तोत्र शाकभोज्यादिनामगर्भित#, संस्कृत, का.१२ जिनस्तवन
सं., पद्य, श्लोक१०, आदि वाक्यः शुभभावानतः स्तौमि... पाकाहेम ७४०६- पे.क्र. २, पृ.?, लक्षणशास्त्रमय महावीरस्तवन व्याश्रय सावचूरि आदि , वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२ जिनस्तवन
मुनि-सकलचन्द्र, मारुगूर्जर, पद्य, गा.१०, पाकाहेम १०१३३- पे.क्र. ४, पृ. ?, गौतमपृच्छास्तवन आदि, वि-१९मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१२ जिनस्तवन जुओ - पञ्चजिनस्तव हारबन्ध, आचार्य-कुलमण्डनसूरि, संस्कृत, श्लोक२३ जिनस्तवन जुओ - साधारणजिनस्तवन, आचार्य-अमरसिंहसूरि, संस्कृत, श्लोक९ जिनस्तवन जुओ - साधारणजिनस्तवन, प्राकृत, गा.१२ जिनस्तवन जुओ - साधारणजिनस्तवन एकद्विबहुवचनतुल्य#, आचार्य-धर्मघोषसूरि, संस्कृत, का.४ जिनस्तवन जुओ - साधारणजिनस्तवन, आचार्य-देवसुन्दरसूरि, संस्कृत, का.११ जिनस्तवन जुओ - साधारणजिनस्तवन, संस्कृत, का.६। जिनस्तवन उक्तित्रय समासषट्क षट्प्रत्ययमय जुओ - देवाःप्रभोस्तोत्र, आचार्य-जयानन्दसूरि, संस्कृत, का.९ जिनस्तवन चौविसी जुओ - जिनस्तवनचतुर्विंशतिका, गणि-जिनवल्लभ, प्राकृत, ग्रं.१५५ जिनस्तवन विविधभाषाबद्ध जुओ - विविधभाषाबद्धजिनस्तवन, आचार्य-जयचन्द्रसूरि, प्राकृत,संस्कृत,अपभ्रंश, श्लोक२३ जिनस्तवन षण्णवति जुओ - षण्णवति जिनस्तवन, आचार्य-महेन्द्रसिंहसूरि, संस्कृत, का.२९ जिनस्तवन सिद्धहेमद्वितीय-तृतीयपादसन्धिगर्भ जुओ - सिद्धहेमद्वितीय-तृतीयपादसन्धिगर्भजिनस्तवन*, संस्कृत, का.१० जिनस्तवन हरिशब्दार्थगर्भित (हरिशब्दार्थगर्भित जिनस्तवन)
विशालराज, सं., पद्य, का.१०, आदि वाक्यः इन्द्रेभास्वशुक... पाकाहेम १२२८८ - पे.क्र. १, पृ. १, हरिशब्दार्थगर्भितजिनस्तवन टिप्पणीसहित तथा गोशब्दार्थकाव्य सटिप्पणी,
वि-१७मी, संपूर्ण
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