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कृति उपरथी प्रत माहिती पे. विशेष- गाथा-३५. प्रत विशेष- प्रति एक बाजूथी उंदरे करडेली छे, पत्र-५८,५९ भेगा छे.
कुल झे.पृष्ठ-९० चैत्यवन्दनसूत्र व्याख्या जुओ - आवश्यकसूत्रनो हिस्सो चैत्यवन्दनसूत्र-(सं.)ललितविस्तरावृत्ति, आचार्य-हरिभद्रसूरि, संस्कृत चैत्यवन्दनसूत्रादि
, प्रा. सं., पद्य, वताकांति ४२५, पृ. ४, चैत्यवन्दनसूत्रादि, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-४ चैत्यवन्दनस्तोत्र
सं., पद्य, श्लोक२४, पाकाहेम १५५३५- पे.क्र. २, पृ. ४, चैत्यवन्दनस्तोत्रद्वय, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-५ चैत्यवन्दनस्तोत्र
सं., पद्य, श्लोक१०, पाकाहेम १५५३५- पे.क्र. १, पृ. ४, चैत्यवन्दनस्तोत्रद्वय, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-५ चैत्यवन्दना वन्दनक प्रत्याख्यानभाष्य जुओ - आवश्यकसूत्रनो हिस्सो चैत्यवन्दना-वन्दनक-प्रत्याख्यान*, प्राकृत चैत्यवन्दना वन्दनक प्रत्याख्यान-(सं.)लघुवृत्ति
आचार्य-तिलकसूरि, सं., गद्य, ग्रं.५५०, आदि वाक्यः श्रीवीरजिनवरेन्द्रं वन्दित्वा चैत्यवन्दनादीनि... पातासंघवी १२१-२- पे.क्र. १, पृ. १-५०, चैत्यवन्दनप्रत्याख्यानलघुवृत्ति आदि, संपूर्ण
डीवीडी-३४/५२ पातासंघवी १८९-१- पे.क्र. १, पृ. १-५८, चैत्यवन्दना-वन्दनक-प्रत्याख्यान लघुवृत्ति आदि, वि-१२९८, संपूर्ण
डीवीडी-३७/५४ चैत्यवन्दनादिभाष्यत्रय (भाष्यत्रय)
प्रा., पद्य, गा.१२२, आदि वाक्यः वन्दित्तु वन्दणिज्जे सव्वे चिइवन्दणाइ सुवियारं... पातासंघवीजीर्ण ८६-१, पृ. ८१, चैत्यवन्दनादिभाष्य, त्रुटक प्रत विशेष- पत्र त्रुटक है तथा अस्त-व्यस्त हालत में झेरोक्ष हुआ है.
कुल झे.पृष्ठ-६० पातासंघवी १६५- पे.क्र.७, पृ. १८२-१९९, उपदेशमाला आदि, संपूर्ण पे. नाम- चैत्यवन्दन, वन्दनक व प्रत्याख्यानभाष्य, पे. विशेष- संपूर्ण. चैत्यवन्दभाष्य गाथा-६३,
गुरुवंन्दभाष्य-४१ व प्रत्याख्यानभाष्यय गाथा-३९. झेरोक्ष पत्र-७२-७८.
कुल झे.पृष्ठ-९०, डीवीडी-३६/५४ तालाद ३८७, पृ. १५४, चैत्यवन्दनादिक सह वृत्ति, वि-१४मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-५०, डीवीडी-९४/९६ पाकाहेम १०२२- पे.क्र. १८, पृ. ३६-३९, प्रकरण, स्तुति, स्तोत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ६८ थी ७० नथी. इसी भंडार के प्रत नं.१०१२ को भूल से नं.१०२२ लिखा गया था. असल
में १०२२ नं.की झेरोक्ष प्रति नहीं है परन्तु कम्प्यूटर में प्रविष्ट की गयी कृति माहिती सही है. चैत्यवन्दनादिभाष्यत्रय-(सं.)वृत्ति
सं., गद्य, आदि वाक्यः सूत्रं व्याख्यायते इच्छामि पडिक्कमिउं इत्यादि... तालाद ३८७, पृ. १५४, चैत्यवन्दनादिक सह वृत्ति, वि-१४मी, संपूर्ण
___कुल झे.पृष्ठ-५०, डीवीडी-९४/९६ चैत्यवन्दनादिभाष्यत्रय-(सं.)अवचूरि
आचार्य-सोमसुन्दरसूरि[तपागच्छ], सं., गद्य, पाकाहेम ७७०३, पृ. ८, चैत्यवन्दनादिभाष्यत्रयावचूर्णि, वि-१७मी, संपूर्ण
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