________________
कृति उपरथी प्रत माहिती पाकाहेम २८७२, पृ. ३४, कातन्त्रव्याकरण द्वितीयपादपर्यन्त दौर्गसिंहीवृत्तिसहित सावचूरि पञ्चपाठ, वि-१६मी,
प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- पत्रांक-१ थी १४ प्रथमपाद प्रत नं.२८७१ के अन्तर्गत है.
कुल झे.पृष्ठ-३५ पाकाहेम ३८१३, पृ. ११५, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति सहित आख्यातवृत्ति, वि-१६मी, प्रतिअपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-११५ पाकाहेम ३९३४, पृ. १३, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति प्रथमसन्धि, वि-१७मी, प्रतिपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१३ पाकाहेम ६७८४, पृ. १२९, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति-चतुष्कवृत्ति टिप्पनिका-गोल्हणवृत्ति, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१२८ पाकाहेम १०४३०, पृ. ३६, कातन्त्रव्याकरण दुर्गसिंहवृत्तिसहित प्रथमवृत्ति, वि-१६मी, प्रतिपूर्ण पाकाहेम १०४३१, पृ. ३९, कातन्त्रव्याकरण दुर्गसिंहवृत्तिसहित आख्यातवृत्ति, वि-१४७०, प्रतिपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-४० पाकाहेम १०६७४, पृ. ५२, कातन्त्रव्याकरण कृदत्ति, वि-१४७०, प्रतिपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१२ पाकाहेम १२८३७- पे.क्र. १, पृ. २७६, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्तिसहित टिप्पणीसहित आदि, वि-१५मी,
संपूर्ण पे. नाम- कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहवृत्ति सहित टिप्पणी सहित प्रत विशेष- पत्र २४७मां खरतरगच्छीय आचार्य श्रीजिनचन्द्रसूरिनुं तथा सरस्वती- एम बे अतिसुन्दर चित्रो
छ
कुल झे.पृष्ठ-९० पाकाहेम १२८३८ - पे.क्र. १, पृ. २७९, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्तिसहित टिप्पणीसहित आदि, वि-१४९३,
संपूर्ण पे. नाम- कातंत्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति सहित टिप्पणी सहित
कुल झे.पृष्ठ-११२ पाकाहेम १२८३९, पृ. २५, कातन्त्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति-कृवृत्ति टिप्पणीसहित त्रुटक, वि-१५मी, त्रुटक
कुल झे.पृष्ठ-१० पाकाहेम १८७८९, पृ. ७६, कातन्त्रव्याकरण वृत्ति, वि-१५०५, संपूर्ण
प्रत विशेष- पत्र ११मुं, २७मुं, ३४मुं डबल छे. पत्र ३८मुं, ३९मुं तथा ४७मुं तथा ६२थी ७१ पत्र नथी. कातन्त्रव्याकरणनी (सं.)दुर्गसिंहवृत्तिनुं (सं.)पज्जिकाविवरण (पञ्जिकाविवरण)
जैनेतर-त्रिलोचनदास, सं., गद्य, आदि वाक्यः प्रणम्य सर्वकर्तारं सर्वदं सर्वेवेदिनम् । सर्वीयं सर्वगं शर्वं
सर्वदेवनमस्कृतम् ।।... पातासंघवीजीर्ण ६२- पे.क्र. २, पृ. १६५मुं, योगशास्त्रान्तर्गत श्लोक आदि, त्रुटक पे. विशेष- प्रकृतिसंधि सुधी.
डीवीडी-५८/६० पातासंघवी ८३-१, पृ. १०७, कातन्त्रवृत्तिपञ्जिका षष्ठ पाद, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-५०५०.
कुल झे.पृष्ठ-४५ पातासंघवी ८३-२, पृ. १८८, कातन्त्रवृत्तिपञ्जिका अष्टम पाद, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- ताडपत्र मूल पत्रांक-१ का पाठ पाद-६ के प्रारंभिक पाठ से मिलता है. पत्रांक-२ से पाठ में
भिन्नता मिलती है.
कुल झे.पृष्ठ-७८ कातन्त्रव्याकरण-(सं.)पञ्जिकानी (सं.)प्रदीप टीका (प्रदीप टीका)
पण्डित-देशल, सं., गद्य,
191