________________
कृति उपरथी प्रत माहिती पाकाहेम १२९५८, पृ. ६४, काव्यकल्पलतावृत्तिमकरन्द, वि-१७२९, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ५४ थी ५७ नथी.
कुल झे.पृष्ठ-६० कविशिक्षा-(सं.)काव्यकल्पलता टीकानी (सं.)काव्यकल्पलतामकरन्द टीका (काव्यकल्पलतामकरन्द टीका)
गणि-शुभशील, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १६६५, पाकाहेम १२९५८, पृ. ६४, काव्यकल्पलतावृत्तिमकरन्द, वि-१७२९, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ५४ थी ५७ नथी.
कुल झे.पृष्ठ-६० कविशिक्षा-(सं.)काव्यकल्पलता वृत्तिनी काव्यकल्पलता परिमल टीका (काव्यकल्पलता परिमल टीका)
आचार्य-अमरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि वाक्यः श्रीशारदां हृदि ध्यात्वा विख्यातं परिमलाख्यया... पाकाहेम ९७९, पृ. ३९, काव्यकल्पलतावृत्ति परिमल, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-४० पाकाहेम २५४३, पृ. ६६, कविशिक्षाकाव्यकल्पलता परिमल वृत्ति, वि-२०मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६५ पाकाहेम २६४६, पृ. ९२, काव्यकल्पलतावृत्ति परिमल, वि-१७मी, अपूर्ण प्रत विशेष- अपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-९२ कविशिक्षा-(सं.)काव्यकल्पलताटीकानी (सं.)कल्पलताविवेक टीका (कल्पपल्लवशेष), (कविकल्पलतापल्लवशेषविवेक), (कल्पलताविवेक टीका) सं., गद्य, आदि वाक्यः यत् पल्लवे न विवृतं दुर्बोधं मन्दबुद्धिभिश्चापि । क्रियते कल्पलतायां तस्य
विवेकोऽयमतिसुगमः |... पातासंघवीजीर्ण ३०, पृ. ३२५, काव्यकल्पलताविवेक त्रुटित पत्र ५५, त्रुटक प्रत विशेष- अति जीर्णने वचमां घणा ज टुकडा छे-माटे नकामी. पत्र २५माना टुकडा छे. शब्दालंकार,
अर्थालंकार (परिमलना भाव)
डीवीडी-५६/५९ कहारयणकोस (कथारत्नकोश)
आचार्य-देवभद्रसूरि, गुरु-आचार्य-प्रसन्नचन्द्रसूरि, प्रा., रचना सं. विक्रम ११५८, आदि वाक्यः पडिबिम्बियपणयजा निलीणभवभीरुभव्वलोय व्व।...
कृ.विः विशिष्ट रचना प्रशस्ति. वताकांति ३९५, पृ. १५७, कथारत्नकोष, अपूर्ण
डीवीडी-९७/९८ काउसग्गना एकवीस दोष
, पद्य, गा.२१, पातासंघवी २०६-२- पे.क्र. ६०, पृ. १८५मुं, योगशास्त्र चार प्रकाश आदि, संपूर्ण
डीवीडी-३८/५५ काक जुओ - शालिभद्रकारक, अज्ञात-पउम, अपभ्रंश, गा.६९ काकाष्टक
सं., पद्य, श्लोक८, पाकाहेम ८६८८ - पे.क्र.६, पृ. ६, अष्टकानि आदि, वि-१८मी, संपूर्ण प्रत विशेष- उंदरे करडेली छे.
कुल झे.पृष्ठ-६ पाकाहेम ८६८८- पे.क्र. २०, पृ. २०, अष्टकानि आदि, वि-१८मी, संपूर्ण प्रत विशेष- उंदरे करडेली छे.
कुल झे.पृष्ठ-६
188