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कृति उपरथी प्रत माहिती कुल झे.पृष्ठ-६० पाकाहेम १०४३४, पृ. १०, सन्देहविषौषधि-कल्पसूत्रवृत्तिउत्तरार्ध, वि-१६०१, प्रतिपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-११ पाकाहेम १०४५२, पृ. २०, सन्देहविषौषधि-कल्पसूत्रवृत्ति, वि-१५९३, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-३०४१.
कुल झे.पृष्ठ-४१ कल्पसूत्र-(सं.)किरणावलीटीका (किरणावली टीका)
उपाध्याय-धर्मसागर, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १६२८, पाकाहेम १०२७५, पृ. ३२२, कल्पसूत्र किरणावलीटीकासह त्रिपाठ, वि-१६९०, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र १४४मुं डबल छे.
कुल झे.पृष्ठ-३२२ पाकाहेम १६३०७, पृ. २१३, कल्पकिरणावलिसटीक त्रिपाठ, वि-१६९०, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१४४ कल्पसूत्र-(सं.)टिप्पणी
सं., गद्य, पाताहेसं १६४- पे.क्र. १, पृ. १०८-११८, कल्पसूत्र टिप्पणीसह कालिकाचार्यकथा पद्य, अपूर्ण पे. नाम- कल्पसूत्र सह (सं.)टिप्पणी
डीवीडी-८/१८ पाताहेसं १६५, पृ. १-१०३, कल्पसूत्र टिप्पणी त्रुटक अपूर्ण, संपूर्ण
डीवीडी-८/१८ पाताहेसं १६६- पे.क्र. १, पृ. १-१०२A, कल्पसूत्र टिप्पणीसह कालिकाचार्यकथा, संपूर्ण
पे. नाम- कल्पसूत्र सह टिप्पणी प्रत विशेष- मूल पत्रांक-१३४+१२=१४६., झेरोक्ष पत्रांक १ नुं बे वखत झेरोक्ष थयेलुं छे, जेना उपर पत्रांक
६६ लखेलुं छे पण खरेखर पार्नु ६४ सुधी ज छे.
कुल झे.पृष्ठ-६४, डीवीडी-९/१८ वताकांति ४१३, पृ. ५६, पर्युषणाकल्प टीप्पणक, संपूर्ण
डीवीडी-९७/९८ पाकाहेम १०१२०, पृ. ९९, कल्पसूत्र टिप्पणी सहित, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-१०० कल्पसूत्र-(सं.)टिप्पण आचार्य-विनयचन्द्रसूरि, सं., गद्य, ग्रं.४१८, आदि वाक्यः सौवर्णः सूत्रभृद्भिर्व्यरचि शुचिफलैः श्रीगुरोराज्ञया यः...
कृ.विः र.सं.-वाण..खेंदुवर्षे. पातासंघवीजीर्ण ९४- पे.क्र. ४, पृ. ?, कल्पसूत्र विगेरे त्रुटक ग्रन्थो, संपूर्ण
पे. विशेष- झरोक्ष पत्र १०८ से अन्तिम पत्र तक है. प्रत विशेष- जीर्ण-त्रुटक-अव्यवस्थित
डीवीडी-५८/६० पातासंघवी १६९-२- पे.क्र. ३, पृ. १-३२, कल्पसूत्र आदि, संपूर्ण
डीवीडी-३६/५४ कल्पसूत्र-(प्रा.सं.)अन्तर्वाच्य (कल्पसूत्र अन्तर्वाच्य), , विभाग-DJशम
प्रा.,सं., गद्य, पाकाहेम ७८९, पृ. ४९, कल्पान्तर्वाच्य, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-३४ पाकाहेम १०२७७, पृ. ६४, कल्पसूत्रान्तर्वाच्य, वि-१५५०, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ४३मुं नथी.
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