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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती कल्पलघुभाष्य जुओ बृहत् कल्पसूत्र (प्रा.) लघुभाष्य गणि सङ्घदास गणि क्षमाश्रमण, प्राकृत, गा.६६०० कल्पलताविवेक टीका जुओ कविशिक्षा - (सं.) काव्यकल्पलताटीकानी (सं.) कल्पलताविवेक टीका, संस्कृत कल्पविशेषचूर्णी जुओ बृहत् कल्पसूत्र - (प्रा.) विशेषचूर्णी, प्राकृत, ग्रं. ११००० - कल्पवृत्ति जुओ - बृहत् कल्पसूत्र - (सं.) वृत्ति, आचार्य - मलयगिरिसूरि, संस्कृत, प्राकृत कल्पसूत्र (पर्युषणाकल्प), ( दशाश्रुतस्कन्धसूत्र अष्टमाध्ययन), (बारसासूत्र), (कप्पसुत्त न्त) आचार्य भद्रबाहुस्वामी, प्रा., संयुक्त प+ग, ग्रं. १२८०, आदि वाक्यः नमो अरिहन्ताणं... तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पञ्च हत्युत्तरे होत्था। ... पाताखेत ५७ पे क्र. १ पृ. १-१३३. कल्पसूत्रमूल कालकाचार्यकथा संपूर्ण पे. नाम- पज्जोसवणाकप्प, पे. विशेष- ग्रन्थाग्र - १२१६. ग्रन्थाग्र १२१६ को १३१६ बनाया गया है. कुल झे. पृष्ठ-७५, डीवीडी-६२/६४ पाताखेत १-१, पृ. १२१, कल्पसूत्र त्रुटक, संपूर्ण डीवीडी-६१/६३ पाताखेत २-१- पे.क्र. १ पृ. १-९२ कल्पसूत्र, कालकाचार्यकथा अपूर्ण, संपूर्ण डीवीडी-६१/६३ पातासंघवीजीर्ण ३३ पृ. २०४, कल्पसूत्र, त्रुटक प्रत विशेष प्रथम पत्र १ नथी. अंतना पण नथी, वचमां पण नथी. जीर्ण नकामुं. डीवीडी-५६/५९ पातासंघवीजीर्ण ४१ पै.क्र. १, पृ. १४३, कल्पसूत्र तथा कालिकाचार्यनी कथा, त्रुटक प्रत विशेष- वचमां केटलांक पत्र नथी. - - डीवीडी-५७/६० पातासंघवीजीर्ण ६८ पृ. १६७, कल्पसूत्र, वि-१३३५, त्रुटक प्रत विशेष- त्रुटक-नकामुं. डीवीडी-५८/६० पातासंघवीजीर्ण ८७ पेक्र. १ पृ. ९०२ कल्पसूत्र तथा कालकाचार्य कथा, संपूर्ण प्रत विशेष- कागळमां-जीर्ण. डीवीडी-५८/६० पातासंघवीजीर्ण ९० पे क्र. १ पृ. २, कल्पसूत्रादि अनेक प्रकीर्णक ग्रन्थों के छूटक पन्ने, संपूर्ण पे. विशेष- त्रुटक. पत्र अस्त-व्यस्त है. झेरोक्ष पत्र - ४३-५४,६०-६७. प्रत विशेष- त्रुटक- अव्यवस्थित. कुल झे. पृष्ठ-१४४, डीवीडी-५८/६० पातासंघवीजीर्ण ९४ पे क्र. १. पू. १, कल्पसूत्र विगेरे त्रुटक ग्रन्थो, संपूर्ण ?, पे. विशेष झेरोक्ष पत्र १-८, २१-३४. प्रत विशेष - जीर्ण- त्रुटक - अव्यवस्थित डीवीडी-५८/६० पातासंघवीजीर्ण ९४ पे क्र. ६. पृ. २, कल्पसूत्र विगेरे त्रुटक ग्रन्थो, संपूर्ण पे. विशेष - कल्पसूत्र ही होने की संभावना है. झेरोक्ष पत्र ४५-६२ एक समान तथा ६३-७२ पहले (४५-६२) से थोड़ा अलग है परन्तु कल्पसूत्र ही होना चाहिये. टिप्पण का भी किञ्चित् अंश मिलता है.. प्रत विशेष जीर्ण- त्रुटक- अव्यवस्थित - डीवीडी-५८/६० पातासंघवीजीर्ण ९६ पे क्र. २. पृ. १, योगशास्त्र स्वोपज्ञ विवरण आदि संपूर्ण पे. विशेष पत्रानुक्रम अस्त-व्यस्त है. प्रत विशेष गायकवाडी सूचिपत्रमां योगशास्त्र (सविवरण) ए प्रमाणे नाम छे. (पत्र-३६५). - डीवीडी-५८/६० 176
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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