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कृति उपरथी प्रत माहिती कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ २४ जिन स्तुति (चतुर्विंशतिजिन स्तुति)
अप., पद्य, गा.२५, आदि वाक्यः मङ्गलमाला पुन्नघड जय भुवणत्तय सामी... पाताहेसं १६८- पे.क्र. ६२, पृ. १५८अ-१५९आ, दशवैकालिकसूत्र, पाक्षिक सूत्रस्तोत्रवृत्ति, स्तुति स्तवनादि, संपूर्ण
पे. नाम- चउवीसी, पे. विशेष- संपूर्ण. झेरोक्ष पत्र-७१-७२. प्रत विशेष- प्रारंभिक कुछेक पत्र उभय पार्श्व खंडित होने से पाठ भी खंडित है.
कुल झे.पृष्ठ-७२, डीवीडी-९/१८ २४ जिनना पञ्चकल्याणक स्तव (चोवीस जिनना पञ्चकल्याणक स्तव)
प्रा., पद्य, गा.१३६, पातासंघवी १९५-२- पे.क्र.६, पृ. १३६-१५०, उपदेशमाला आदि, संपूर्ण
डीवीडी-३७/५५ २५ कायोत्सर्ग द्वार जुओ - षोडशव्रतोच्चारादि ४ द्वार, प्राकृत २८ अनशन द्वार जुओ - षोडशव्रतोच्चारादि ४ द्वार, प्राकृत ३२ आराधनाफल द्वार जुओ - षोडशव्रतोच्चारादि ४ द्वार, प्राकृत ५६ दिक्कुमारिकृत शुचिकर्म जुओ - छप्पन दिक्कुमारीकृत शुचिकर्म, मारुगूर्जर ८४ आशातना काव्य जुओ - चोरासी आशातना काव्य, संस्कृत, का.४ ८४ आशातनासूत्र जुओ - चौरासी आशातनागाथा, प्राकृत, गा.४ ९२ जिननाम स्तवन जुओ - बाणुजिननामस्तवन, आचार्य-विनयदेवसूरि, मारुगूर्जर, गा.३१ ९६ जिनस्तवन जुओ - षण्णवति जिनस्तवन, आचार्य-महेन्द्रसिंहसूरि, संस्कृत, का.२९ अकलकदेवाष्टक
सं., पद्य, श्लोक१०, पाकाहेम १३७५- पे.क्र. १, पृ. १, अकलङ्कदेवाष्टकादि अष्टको, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-४ पाकाहेम ८६८८- पे.क्र. १, पृ. १, अष्टकानि आदि, वि-१८मी, संपूर्ण प्रत विशेष- उंदरे करडेली छे.
कुल झे.पृष्ठ-६ अक्रियावाद्यादिसर्वनयादिविचार
प्रा.,सं., पद्य, आदि वाक्यः असीयसयं किरयाणं अक्किरियाणं च होइ चुलसीइ... ___कृ.विः अं.वाक्य-यद्भव्ये त एव च त्रिकचतुष्कसंयोगगतिभेदात् पंचदशधा प्रदेशान्तरेभिहिता इति. भांता ७०- पे.क्र. १०२, पृ. १३९०-१३९B, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण
पे. विशेष- सूचीपत्रांक-१-१४४४. प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ अक्षरार्थगमनिका जुओ - दशवैकालिकसूत्र-(सं.)चूलिकायुगलावचूर्णि-अक्षरार्थगमनिका, संस्कृत अक्षरार्थगमनिका अवचूरि जुओ - दशवैकालिकसूत्र-(सं.)अवचूरि, संस्कृत, ग्रं.१७०० अक्षौहिणीसेनाप्रमाण
प्रा., पद्य, गा.७, आदि वाक्यः गयरहहयजोहाणं सव्वेसि पिण्डियाण दो लक्खो... भांता ७०- पे.क्र. १४२, पृ. १९६०-१९७A, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२