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कृति उपरथी प्रत माहिती पाकाहेम १६४०५, पृ. ९०, ओघनियुक्ति दीपिकाटीका सह, वि-१५०६, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६१ पाकाभाभा ६३, पृ. १२३, ओघनियुक्ति वृत्तिसह, वि-१५२९, संपूर्ण भांका १३९, पृ. १६२, ओघनियुक्ति टीका सहित, वि-१४३६, संपूर्ण
डीवीडी-८५ भांका २३७, पृ. ४३, ओघनियुक्ति सह अवचूर्णि, वि-१५२७, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र नं.१-११३४
डीवीडी-८८ ओघनियुक्ति-(सं.)वृत्ति
आचार्य-द्रोणाचार्य, सं., गद्य, ग्रं.७०००, पातासंघवी १७-१, पृ. २१३, ओघनियुक्तिटीका, संपूर्ण
डीवीडी-२२/४१ पाकाहेम ६५५९, पृ. १३०, ओघनियुक्ति वृत्ति, वि-१४८२, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र १०-११ अने १०५-१०६ भेगां तेमज १२२मुं डबल छे.
कुल झे.पृष्ठ-१३० पाकाहेम १००६९, पृ. १३४, ओघनियुक्ति वृत्तिसह, वि-१६मी, संपूर्ण
प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-८३८५. प्रथम पत्रमा क्र. ९९९०ना टिप्पण जेवू चित्र छे. पाकाहेम १०५६२, पृ. १७८, ओघनियुक्ति सटीक त्रिपाठ, वि-१६६५, अपूर्ण पाकाहेम १४८५६, पृ. १०३, ओघनियुक्ति सटीक, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-८२२५.
कुल झे.पृष्ठ-१०४ पाकाहेम १४८५७, पृ. १४६, ओघनियुक्ति सटीक, वि-१५७०, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-८३८५.
कुल झे.पृष्ठ-१६९ पाकाहेम १४८७५, पृ. १५४, ओघनियुक्तिसटीक, वि-१६३१, संपूर्ण
प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-८३८५.. पाकाभाभा ६३, पृ. १२३, ओघनियुक्ति वृत्तिसह, वि-१५२९, संपूर्ण भांका १३९, पृ. १६२, ओघनियुक्ति टीका सहित, वि-१४३६, संपूर्ण
डीवीडी-८५ ओघनियुक्ति-(सं.)दीपिकाटीका
आचार्य-माणिक्यशेखरसूरि, गुरु-आचार्य-मेरुतुङ्गसूरि[अंचलगच्छीय(विधि], सं., पद्य, श्लोक५८००, पाकाहेम १६४०५, पृ. ९०, ओघनियुक्ति दीपिकाटीका सह, वि-१५०६, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६१ ओघनियुक्ति-(सं.)अवचूरि
आचार्य-ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १४३९, आदि वाक्यः प्रकान्तोयमावश्यकानुयोग तदनेन
सम्बन्धेन पूर्वं नमस्कारकमाह अरिहन्तेत्यादि व्याख्या सा च...
कृ.विः द्रोणाचार्यवृत्यानुसारिणी. पाकाहेम ४८९, पृ. ५४, ओघनियुक्ति अवचूरि, वि-१५०५, संपूर्ण प्रत विशेष- शाके १३७०मां लखेली प्रति.
कुल झे.पृष्ठ-३८ पाकाहेम १०४९२, पृ. २३, ओघनियुक्ति अवचूर्णि, वि-१४६३, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२४ पाकाहेम १०४९३, पृ. ३७, ओघनियुक्ति अवचूर्णि, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-४०
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