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कृति परिवार वृक्ष अनुसार प्रत सूचि
इस सूची में "कृति परिवार वृक्ष" शैली से सूचनाएँ होगी. मूल (सर्वोच्च) कृतियां परस्पर अकारादि क्रम से होगी व तत् तत् मूल कृति के नीचे उस पर से लिखी गई कृतियाँ शाखा/प्रशाखा आदि की शैली से आएगी.
अकारादि क्रम सर्व प्रथम बिंदी बाद में विसर्ग, फिर अ से औ स्वर, फिर क से ह व्यंजन व अंत में काना, मात्रा, खडी पाई, नुक्ता की निशानी व हलन्त की निशानी- इस तरह से होगा.
इस कृति परिवार में माहिती द्विस्तरीय होगी. * कृति माहिती स्तर इसमें निम्नलिखित माहिती होगी.
प्रथम पंक्ति (1) कृति का प्रथम नाम : यह नाम जिस भी स्तर पर हो, पूरी स्पष्टता के साथ लिखा जाता है. यथा
'C' स्तर हो तो कल्पसूत्र के (प्रा.) नियुक्ति की टीका इत्यादि. जो कृतियां संभवितरूप से (आ. श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में रही प्रकाशित पुस्तकों के आधार
पर) अप्रकाशित है उन कृति नामों के अंत में * का चिह्न किया गया है. (2) कृति के प्रचलित नाम : यदि हो तो '()' में लिख दिए जाते है. यथा ॐकार माहात्म्य स्तोत्र के लिए
(प्रणवमंत्र/ महावाक्यमंत्रस्तोत्र) ये दो प्रचलित नाम है. (3) विभाग : कृति को धार्मिक, धर्मेतर, जैन-जैनेतर, श्वे., दि. आदि विभाग व सामान्य रूपसे दिया गया
स्थूल विषय वर्गांक. यथा DJशम1अ = धार्मिक जैन श्वे. मूर्तिपूजक आगमिक अंग साहित्य. द्वितीय पंक्ति इस पंक्ति में यथा उपलब्ध कृति संबंधी निम्न लिखित सूचनाएँ होती है.. (1) कर्ता माहिती : कर्ता का पद आदि स्वरूप, नाम, गच्छ/गोत्र, कर्ता के अन्य प्रचलितनाम, कर्ता के
हयातीकाल का नियत या अनुमानित समय/समयावधि-(यथा वि. सं. 1354 हयात, 1415 से
1470, 12वी इत्यादि), विद्वान कोड- (यथा Jशम = जैन श्वे. मूर्तिपूजक इत्यादि), (2) कर्ता के गुरु का नाम : कर्ता की ही तरह प्रचलित नाम से लगा कर विद्वान नंबर तक की सूचनाओं
के साथ. (3) भाषा : कृति गत संस्कृत, प्राकृत आदि एक या एकाधिक जितनी भी भाषाएँ हो. (4) कृतिप्रकार : गद्य, पद्य, गद्य+पद्य आदि. (5) कृति परिमाण : अध्याय/ढाल आदि, गाथा/श्लोकादि, ग्रंथाग्र - ये तीनों यथोपलब्ध आएँगे. (6) आदि वाक्य : (1), (2)... ऐसे क्रमांक के साथ कृति के एकाधिक आदि वाक्य सामान्यतः उपलब्ध
विशिष्ट पाठ भेदों के आधार पर होंगे. आदि वाक्य के बीच शब्द के अंत में एक एवं दो शून्य '0' सुविधा के लिए पाठ के किए गए सामान्य एवं विशिष्ट/अधिक संक्षिप्तिकरण के सूचक है (यथा तेणं0 समणे0 चपा0.... इत्यादि व मंगलादि सत्थानि00 आचारंग...इत्यादि) पाठ के बीच में Underscore___ खंडित पाठ के सूचक है व ???' भ्रष्ट/अपठनीय पाठ के सूचक
है. यदि एक ही प्रति मिलती हो और उसका आद्य पत्र न हो तो यह कोलम खाली रहता है. (7) अंतिम वाक्य : कृति विशेष में यथोपलब्ध कही-कहीं पर दिया गया है. (8) जुओ : कृति का यदि कोई प्रचलित अन्य नाम भी हो तो शोधार्थी की सुविधा के लिए वह नाम भी
अकारादि क्रम से जिस जगह आना चाहिए उस जगह पर भी आएगा तथा उसके सामने "जुओ" कर के उस कृति का मूलनाम, कर्तानाम, व भाषा दिया जाएगा. इस पद्धति से वाचक को कृति का कोई सा भी नाम मालूम हो तो भी सही कृति वह सरलता से ढूंढ सकेगा.