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कृति उपरथी प्रत माहिती डीवीडी-६/१५ भांता २३, पृ. २९९, उपदेशमाला सह दोघट्टीवृत्ति, वि-१२९३, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.२-२४३., पत्र-२९९+१=३००.
डीवीडी-६८/७७ पाकाहेम ६७०६, पृ. १६२, उपदेशमाला दोघट्टीवृत्तिसहित, वि-१५मी, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रतिनां पानां चोंटीने केटलांक खराब थई गयां छे.
कुल झे.पृष्ठ-१६३ उपदेशमालाप्रकरण-(सं.)बृहद्वृत्ति-(प्रा.)कथा सहित जुओ - उपदेशमालाप्रकरण-(सं.)बृहद्वृत्ति हेयोपादेयाटीका-(प्रा.)कथा
सहित, गणि-सिद्धर्षि गणि, संस्कृत,प्राकृत, ग्रं.९५०० उपदेशमालाप्रकरण-(सं.)बृहद्वृत्ति-कथा रहित जुओ - उपदेशमालाप्रकरण-(सं.)हेयोपादेया टीका-कथा रहित, गणि-सिद्धर्षि
गणि, संस्कृत, ग्रं.४०६१ उपदेशमालाप्रकरण-(सं.)बृहद्वृत्ति हेयोपादेयाटीका-(प्रा.)कथा सहित (हेयोपादेया टीका), (बृहद्वृत्ति), (उपदेशमालाप्रकरण(सं.)बृहद्वृत्ति-(प्रा.)कथा सहित) गणि-सिद्धर्षि गणि, आचार्य-वर्द्धमानसूरि, सं.,प्रा., गद्य, ग्रं.९५००, आदि वाक्यः हेयोपादेयार्थोपदेशमामिः
प्रबोधितजनाब्जम्।...
कृ.विः आ. वर्धमानसरिजीए टीकामां सामान्य संस्कार करी प्राकृत कथाओ उमेरी छे. पाताहेसं ३१, पृ. २४६, उपदेशमाला वृत्ति, कथा सहित, वि-१२७९, संपूर्ण
डीवीडी-४/१३ पाताहेसं ३२, पृ. २८४, उपदेशमाला वृत्ति सह, वि-१३३१, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-२४४, डीवीडी-४/१३ तालाद ३२१, पृ. २७४, उपदेशमाला सह हेयोपदेयाटीका, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रथम पत्र अनुपूरित रूप है. इस प्रति में मंगलगाथा जगचूडामणिभूओ है.
कुल झे.पृष्ठ-२१८, डीवीडी-९३/९५ उपदेशमालाप्रकरण-(सं.)हेयोपादेया टीका-कथा रहित (हेयोपादेया टीका-कथा रहित), (उपदेशमालाप्रकरण-(सं.)बृहद्वृत्तिकथा रहित)
गणि-सिद्धर्षि गणि, सं., गद्य, ग्रं.४०६१, आदि वाक्यः हेयोपदेयार्थोपदेशभामिः प्रबोधितजनाब्जम् ।... पातासंघवी १२२, पृ. ३६०, उपदेशमालावृत्ति-हेयोपादेयानाम्नी, वि-१२३६, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-४१६०.,
डीवीडी-३४/५२ पाताहेसं १०१, पृ. १६२, उपदेशमालाप्रकरण हेयोपादेयाटीका सह, संपूर्ण
डीवीडी-७/१६ तालाद ३२८, पृ. २७२, उपदेशमाला सह हेयोपादेयावृत्ति, वि-१२१९, संपूर्ण प्रत विशेष- संशोधित प्रति.
कुल झे.पृष्ठ-११०, डीवीडी-९४/९६ पाकाहेम १०१०९, पृ. ५७, उपदेशमालाप्रकरण हेयोपादेयाटीकासहित, वि-१५मी, संपूर्ण
प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-४१७५. पाकाहेम १०११७, पृ. ८१, उपदेशमालाप्रकरण लघुवृत्ति सह हेयोपादेयावृत्तिसह, वि-१५२०, संपूर्ण प्रत विशेष- श्लोक-४०६०. नाममां लघुवृत्ति थी अहीं शुं ग्रहण करवू?
कुल झे.पृष्ठ-८२ उपदेशमालाविवरण बृहद्वृत्ति उद्धार
प्रा., गद्य, पातासंघवी १६८- पे.क्र. २०, पृ. १९६-२३८, वन्दारुवृत्ति आदि, संपूर्ण
पे. विशेष- अपूर्ण
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