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(भांता) भांडारकर ईन्स्टिट्युट-पूना भांडारकर ईन्स्टिट्युट-पूना (ताडपत्रीय) पूर्णता प्रतिलेखन वर्ष पत्र
क्लिन/ओरिजिनल
डीवीडी (डीवीडी- भाषा परिमाण रचना वर्ष आदिवाक्य
झे.पत्र/झे.पत्र)
ग्रंथांक प्रत नाम
(पेटा नंबर). पेटा नाम कृति नाम
प्रत प्रकार
प्रतविशेष, माप, पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष
कृति प्रकार
विनेयहिता टीका
जिनराजसूरि के पट्ट अन्तर्गत जिनभद्रसूरि की यह प्रत है का उल्लेख है.
सं.
: ग्र.3000
हेमचन्द्रसूरि मलधारी
जयत्यभिप्रेतसमृद्धि
गद्य
श्रेष्ठ
अपर्ण
ताडपत्र
वि. १२६२
:१८४
७१/८०(१८४)
(जुनो नं. १८८१-८२/९)प्रत दो भागों में लिखी गयी है. मूलगाथा ८६६ व द्वारगाथा १३१ की टीका से आरंभ
शतक प्राचीन पञ्चम कर्मग्रन्थविनेयहिता टीका प्रवचनसारोद्वार की तत्त्वज्ञानविकाशिनी टीका - उत्तरार्द्ध प्रवचनसारोद्धारतत्वज्ञानविकाशिनीवृत्ति संवेगरङ्गशाला
हुआ है.
सिद्धसेनसूरि
सं.
ग्रं. १८०००
वि. १२४८
सन्नद्धरपि यत्तमोभि
पाटन नवा सूचीपत्रमा कर्ता सिद्धर्षि लख्या छे.
अपूर्ण
ताडपत्र
२१४
७१/८०(१६४)
(जुनो नं. १८८०-८१/७१)गाथा-७५३० तक है. अन्त भाग अपूर्ण है.....
गा. १००५३.
वि. ११२५
रेहइजेसि पयमह परम
प्रा.... अपर्ण
श्रेष्ठ
३९१
७१/८०(३९६)
(जुनो नं. १८८१-८२/७)सम्बन्धकारिका अने भाष्यना मात्र प्रतीकपाठ छे. अध्याय-७ सूत्र २० सुधी छे. अन्तभाग अपूर्ण छे./१३९ अने १७२ खुटे छे.
जिनचन्द्रसूरि तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह स्वोपज्ञभाष्य की सिद्धसेनीया टीका तत्त्वार्थाधिगमसूत्र
उमास्वाति तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सम्बन्धकारिका-देवगुप्तसूरि टीका तत्वार्थाधिगमसूत्र-स्वोपज्ञभाष्य नी: सिद्धसेन
सम्यग्दर्शनज्ञानचारि : वीरं प्रणम्य सर्वज्ञ
सं.
ग्रं. २२२८२
वीरं प्रणम्य सर्वज्ञ
:गद्य
वृत्ति भाष्य उपर पण छे.
टीका
५०
भगवतीसूत्र वृत्ति
श्रेष्ठ
संपूर्ण
ताडपत्र
४१५
७१/८०(३२७)
(जुनो नं. १८८१-८२/१०)सूचीपत्र-नं.१-९३./१ अने ३ खूटे छे. /३८,३८०,१०४०,१०४B डबल छे., (३४४२.५,
सं.
प्र.१८६१६.........वि.११२८..... सर्वज्ञमीश्वरमनन्त..........
प्रतिपूर्ण
: ताडपत्र
:२८२
७१/८०(९६)
(जुनो नं. १८८०-८१/१६)दो भागों में यह प्रत लिखी गयी है. इस भाग में गाथा-३०३ से अन्त तक है.
भगवतीसूत्र-टीका
अभयदेवसूरि बृहत्क्षेत्रसमास सह मलयगिरीयटीका - उत्तरार्द्ध बृहत् क्षेत्रसमासप्रकरण
जिनभद्र गणि
क्षमाश्रमण बृहत क्षेत्रसमासप्रकरण-टीका मलयगिरिसुरि ५२....जाताधर्मकथागसूत्र, वृत्ति-.......
प्रा.
पद्य
गा.६४० ग्रं. ८७५ ग्रं.७६६० ताडपत्रवि . १२९३
नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण जयति जिनवचनमवितथमित :३०२
गद्य ७१/८१(२३३)......:(जुनो नं. १८८०-८१/२६)सूचीपत्र-नं.१-१२५. १-१३१......
संपर्ण
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