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ग्रंथांक
२२
२३
२४
२५
२६
प्रत नाम
(पेटा नंबर), पेटा नाम कृति नाम
विशेषावश्यकमहाभाष्य वृत्तिसह प्रथम
खण्ड
विशेषावश्यकमहाभाष्य
जिनभद्र गणि
क्षमाश्रमण
विशेषावश्यकमहाभाष्य - शिष्यहिता वृत्ति हेमचन्द्रसूरि
मलधारी
विशेषावश्यकमहाभाष्य वृत्तिसह प्रथम
श्रेष्ठ
खण्ड
विशेषावश्यकमहाभाष्य
जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण
विशेषावश्यकमहाभाष्य- शिष्यहिता वृत्ति हेमचन्द्रसूरि
मलधारी
श्रेष्ठ
पाक्षिकसूत्रवृत्ति व त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र द्वितीय
पर्व
(पे. 9) पक्षप्रतिक्रमणवृत्ति
पाक्षिकसूत्र-वृत्ति
(पे.२)
-
स्थिति
कर्ता
श्रेष्ठ
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रमहाकाव्य
दशवैकालिकसूत्र वृत्ति सह
दशवैकालिकसूत्र
दशवैकालिकसूत्र - टीका उत्तराध्ययनसूत्र पाईयटीकासहित उत्तराध्ययनसूत्र
यशोदेवसूरि
हेमचन्द्रसूरि
श्रेष्ठ
शय्यम्भवसूरि तिलकसूरि
श्रेष्ठ
सुधर्मास्वामी
(पाताहेसं ) पाटण ताडपत्रीय ज्ञान भंडार हेमचन्द्राचार्य संघभंडार
पूर्णता
प्रत प्रकार
प्रतिलेखन वर्ष पत्र
परिमाण
रचना वर्ष
भाषा
प्रतिपूर्ण
प्रा.
सं.
प्रतिपूर्ण
प्रा.
सं.
संपूर्ण
सं.
44..
सं.
संपूर्ण
प्रा.
सं.
संपूर्ण
प्रा.
ताडपत्र
गा. ४३१४
ग्रं. २८०००
ताडपत्र
गा. ४३१४
ग्रं. २८०००
ताडपत्र
श्लोक २७००
सर्ग १०
ताडपत्र
ग्रं. ७००
ग्रं. ७०००
ताडपत्र अध्याय ३६ ग्रं.
वि. ११७५
वि. ११७५
बि. १३२७
वि. ११८०
वि. १३०४
164
आदिवाक्य
३६३
श्रीसिद्धार्थनरेन्द
४३६
श्रीसिद्धार्थनरेन्द
११९
शिवशमैकनिमित्तं
२४०
धम्मो मगलमुक्किट्ठ अर्हन्तः प्रथयन्तु
४०१
सञ्जोगाविप्यमुक्कस्य
क्लिन / ओरिजिनल डीवीडी (डीवीडीझे. पत्र / झे. पत्र) कृति प्रकार
३/१३ (३००)
पद्य
गद्य
३/१३ (३५६)
पद्य
गद्य
३/१३ (१८२)
पद्य
पद्य
3/93(230)
संयुक्त प+ग
गद्य
३/१३ (३३२) संयुक्त प+ग
प्रतविशेष, माप, पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष
कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ पेटा विशेष
(जुनो नं. ४७), (३३.५x२)
आज ग्रंथने गा.के. नं. ३५मां आवश्यकवृत्ति कर्ता -हरिभद्रसूरि एम लख्युं छे. (३१.५x२.२)
(जुनो नं. २ (२)) दो प्रतों को एक साथ रखी गयी है. दोनो का पत्रानुक्रम स्वतंत्र है तथा झेरोक्ष पत्रानुक्रम क्रमशः दिया गया है., ( २९४२). (पे. पृ. १९१) पे. वि. / झेरोक्ष पत्र १-६८.
संपूर्ण ग्रंथाग्र- २७००.
(पे. पृ. १-११९) पे. वि. प्रतिपूर्ण / झेरोक्ष पत्र ६९१८२ / अंतिम सर्ग की श्लोकसंख्या ६९२ से अंत तक एवं बीच-बीच में भी अनुपूरित पाठ लिखकर विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका दी गयी है. / आचार्य हरिषेणसूरिजीने इस प्रति को पढ़ा. [कृ.वि. पर्व१०]
(जुनो नं. ४४), (३०x२.२) लेखन स्थल : स्तम्भतीर्थ