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ग्रंथांकपत नाम
(पेटा नंबर). पेटा नाम कृति नाम
(पातासंघवी) पाटण ताडपत्रीय ज्ञान भंडार संघवी पाडानो भंडार पूर्णता प्रत प्रकार प्रतिलेखन वर्ष पत्र
डीवीडी (डीवीडीभाषा परिमाण रचना वर्ष आदिवाक्य
झे.पत्र/झे.पत्र)
प्रतविशेष, माप, पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष
कति प्रकार
चतु:शरण
(पे.४) आउरपच्चक्खाण लघु
आतुरप्रत्याख्यान लघु
(प. पृ.८६-८७) पं.वि.: गाथा-७४. गायकवाड केटलॉगमां गाथा-४०. आपेल छे. कृ.वि. : गाथा परिमाणमा ४० थी ९४ सुधीनुं वैविध्य जोवा मळे छे. आनी साथे संकळाएल केटलीक प्रतो वीरभद्र गणि वाला आउर पच्चक्खाणनी अगर 'अरहन्ता मंगलं मज्झ..." आदिवाक्यवाला के पछी "कुससत्थरे निसन्नो...'वाला आदिवाक्य वाला आउर पच्चक्खाणनी पण होई शके (महावीर जैन विद्यालयथी आ बन्ने छपाया छे). (प.पृ.८७-९०)
(पे.५) आराधनाकुलक
सामसार
:गा.६९
नमिऊण भणइ एवं
(4.६) चउसरण बृहत् चतुःशरणप्रकीर्णक
(पे. पृ. ९०-९१) पे.वि. : गाथा-६९.. कृ.वि. : गाथा-६२ थी ९१ सुधी मळे छे.
वीरभद्र
गा.६३
पद्य
सावज्जजोगविरई उक्कित
(पे.७) आउरपच्चक्खाण बृहत्.....
आतुरप्रत्याख्यानप्रकीणेकबृहत (पे.८) भक्तपरिज्ञाप्रकीर्णक
गा.७१
देसिक्कदेसविरओ सम्म पद्य नमिऊण महाइसयं
गा. १७२ ग्रं.
(पे..पृ.९१-९४) कृ.वि.: गाथा ६० थी८०.सुधी मले छे.... (पे.पृ. ९४-900) पे.वि. : गाथा-१७३. [कृ.वि. : गाथा १७१ थी १७३ सुधी मळे छे.] (पे.पृ. १००-१०३) पे.वि. : गाथा-१२१.
:४१
महाण
(पे.९) संस्तारकप्रकीर्णक
गा. १२४
पद्य
काऊण नमोक्कारं जिणवर वीरं नमेउण तिलोयभाणु पद्य
(पे. १०) श्राद्धदिनकृत्य
: गा.३४०
श्लोक ८२
(4.११) देवत्वे स्थविराकथा (पे.१२) धर्मपाल-वस्तुपालकथा (ये.१३) दिवाकरकथा उत्तमसेवायाम (ये.१४) धन्य-शालिभद्रकथा दाने
(पे.पृ. १०४-११५) [कृ.वि.: गाथा-३३९ थी ३४४ सुधीनी संख्यामां मळे छे. देवेन्द्रसूरि कृतनो ज गाथोद्धार? समान आदिवाक्य?] (प.पू. ११५-११८2.. (पे.पू. ११८-११82..वि. : अक्षरो भंसाई गया छे.. (प.पू. ११९-१२४) पे.वि. : उत्तम सेवा उपर (पे.पू. १२४-१३०) पे.वि. : दान विषे.
गा. १३९ श्लोक २१८
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