SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1009
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उववाय 1001 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 2 उववाय "अपजत्ता सुहुमेत्यादि', (अहेलोयखेत्तणालोएत्ति)। अधोलोकलक्षणे क्षेत्रे या नाडी सनाडी सा ऽधोलोक्क्षेत्रनाडी तस्या एवमूर्द्धलोक क्षेत्रनायपि (तिसमइएणवत्ति) अधोलोकक्षेत्रनाड्या बहिः पूर्वादिदिशि मृत्वा एकेननाडीमध्ये प्रविष्टो द्वितीये समये ऊर्द्धगतस्तएकप्रतरे पूर्वास्यां पश्चिमायां वायदोत्पत्तिर्भवति तदातुश्रेण्यांगत्वा तृतीयसमये उत्पद्यत इति / (चउसमइएणवत्ति) यदा नाड्या बहिर्वायव्यादिविदिशि मृतस्तदैकेन समयेन पश्चिमायामुत्तरस्यां वा गतो द्वितीयेन नाड्यां प्रविष्टिस्तृतीये ऊर्द्ध गतश्चतुर्थे तु श्रेण्यां गत्वा पूर्वादिदिश्युत्पद्यत इति। इदं च प्रायो वृत्तिमङ्गीकृत्योक्तमन्यथा पञ्चसामायिक्यपि गतिः सम्भवत्ति यदाऽधोलोककोणादूर्द्धलोककोण एवोत्पत्तव्यं भवतीति / भवन्ति चात्र गाथाः। “सुत्ते चउसमयाओ, नत्थि गईओ परावि णिहिट्ठा। जुञ्जइय पंचसमया, जीवस्स गई इहलोए॥१॥ जो तमतमविदिसाए, समोहओ वंभलोगविदिसाए। उववज्जई गईए, सो नियमापंचसमयाए॥२॥ उजुया यतेगबंका, दुहओ बंका गई वि णिद्दिट्ठा। जुञ्जति यति चउबंका, विनाम चउ पंच समयाए।।३। उववाया भावाओ, नपंच समयाऽहवा न सत्तावि। भणिया जह चउसमया, महल्लबंधेन सत्तावित्ति // 4 // " “अपज्जत्ता वायरतेउक्काइएणमित्यादौ "(दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहणं उववज्जेजत्ति) एतस्येयं भावना समयक्षेत्रादसावेकेन समयेनोर्द्धं गतो द्वितीयेन तु नाड्या बहिर्दिग्व्यवस्थितमुत्पतिस्थानमिति / तथा समयक्षेत्रादेकेनोर्द्ध याति द्वितीयेन तु नाड्या बहिः पूर्वादिदिशि तृतीयेन विदिग्व्यवस्थितमुत्पत्तिस्थानमिति। अथ लोकचरमान्त-माश्रित्याह, अपजत्ता सुहमपुढवीकाईएणं भंते! लोगस्सेत्यादि। इह चलोकचरमान्ते बादराः पृथिवीकायिकाप्कायिकतेजोवन-स्पतयो न सन्ति सूक्ष्मास्तु पश्चापि सन्ति बादरवायुकायिकाश्चेति, पर्याप्ता पर्याप्तभेदेन द्वादश स्थानान्यनुसर्तव्यानीति / इह च लोकस्य पूर्वचरमान्तात् पूर्वचरमान्ते उत्पद्यमास्यैकसमयादिका चतुःसमयान्ता गतिः सम्भवत्यनुश्रेणिविश्रेणिम्भवात्। भ० 34 श०१ उ०) (20) पृथ्वीकायादीनां समवहत्य देवलोकेषूत्पादः। पुढवीकाइएणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए य सक्करप्पभाए य अंतरा समोहए समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढवीकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! किं पुट्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेजा पुटिव आहारित्ता पच्छा उववज्जेज्जा ? गोयमा! पुट्विं वा उववज्जित्ता एवं जहा सत्तरसमसए छट्ठद्देसए जाव तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ पुटिव वा उववज्जेज्जा णवरं तेहिं संपाउणिज्जा इमेहिं आहारो भण्णइ सेसं तं चेव / पुढवीकाइएणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए सक्करप्पभाए पुढवीए अंतरा समोहए जे भविए ईसाणे कप्पे पुढवीकाइयत्ताए उववजित्तए। एवं चेवजावईसिप्पन्माराए उववाएयव्वो। पुढवीकाइएणं भंते! सकरप्पभाए बालुयप्पभाए पुढवीए अंतरासमोहए समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे जाव ईसिप्पभाराए। एवं एएणं कमेणं जाव तमाए अहेसत्तमाए पुढवीए अंतरा समोहए समोहणिया जे भविए सोहम्मे कप्पे जाव ईसिप्पब्माराए उववाएयव्वो। पुढवीकाइएणं भंते ! सोहम्मीसाणं सणंकुमारमाहिंदाण य कप्पाणं अंतरा समोहए समोहइत्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुढवीकाइयत्ताए उववञ्जित्तए सेणं मंते! पुटिव उववज्जित्ता पच्छा आहारेजा सेसं तं चेव जाव से तेण?णं जाव णिक्खेवओ। पुढवीकाइएणं मंते! सोहम्मीसाणाणं सणंकुमारमाहिंदाण य कप्पाणं अंतरासमोहए समोहइत्ताजे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए पुढवीकाइयत्ताए उववजित्तए / एवं चेव एवं जाव अहेसत्तमाए उववाएयव्वो / एवं सर्णकुमारताहिंदाणं बंभलोगस्स कप्पस्स अंतरा समोहए समोहइत्ता पुणरवि जाव अहे सत्तमाए उववाएयवो / एवं बंभलोगस्स लंतगस्स य कप्पस्स अंतरासमोहए पुणरवि जाव अहेसत्तमाए एवं लंतगस्स महासुक्कस्स कप्पस्स अंतरा समोहए पुणरवि जाव अहेसत्तमाए एवं महासुक्कस्स सहस्सारस्सय कप्पस्स अंतरा पुणरवि जाव अहेसत्तमाए, एवं सहस्सारस्सय आणयपाणयकप्पाणं अंतरा, पुणरवि जाव अहेसत्तमाए एवं आणयपाणयआरणअचुताण य कप्पाणं अंतरा, पुणरवि जाव अहेसत्तमाए एवं आरणअचुताणं / गेवेजगविमाणाणं य अंतरा पुणरवि जाव अहे सत्तमाए एवं गेवेजगविमाणाण अणुत्तरविमाणाण य अंतरा पुणरवि जाव अहेसत्तमाए एवं अणुत्तरविमाणाणं ईसिप्पभाराएय पुणरवि जाव अहेसत्तमाए उववाएयव्यो। आउकाइएणं भंते इमीसे रयणप्पभाए य सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए समोहइत्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउकाइयत्ताए उववजित्तए से सं जहा पुढवीकाइयस्स जाव से तेणटेणं एवं पढमा दोच्चाणं अंतरा समोहओ जाव ईसिप्पभाराए उववाएयव्यो / एवं एएणं कमेणं जावतमाए अहे सत्तमाए पुढवीए अंतरा समोहए समोहइत्ता जाव ईसिप्पभाराए उववाएयव्वो। आउकाइयत्ताए आउकाइयाएणं मंते ! सोहम्मीसाणाणं सणंकुमारमाहिंदाण य कप्पाणं अंतरा समेहिए समोहइत्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिघणोदधिवलएसु आउकाइयत्ताए उववञ्जित्तए सेसं तं चेव एवं एएहिं चेव अंतरे समोहइत्ताओ जाव अहेसत्तमाए पुढवीए घणोदधिघणोधिवलएसु आउकाइयत्ताए उववाएयव्वो, एवं जाव अणुत्तरविमाणाणं ईसिप्पभाराए पुढवीए अंतरा समोहए जाव अहेसत्तमाएघणोदधिधणोदधिवलएसुउववाएयव्यो २वाउकाइएणं भंते ! इमीसे रयणप्पमाए पुढवीए सक्करप्पभाए पुढवीए अंतरा समोहए समाहइत्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउकाइयत्ताए उववजित्तए एवं जहा सत्तरसमसएवाउकाइयउद्देसएसुतहा इहवि णवरं अंतरेसु समोहणा वेयरवो सेसं तं चेव जाव
SR No.016144
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1224
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy