________________ 7- 'आता' शब्द पर आत्मा के तीन भेद, आत्मा का लक्षण, आत्मा के कर्तृत्व पर विचार, आत्मा का विभुत्वखण्डन, आत्मा का परिणाम, आत्मा के एकत्व मानने पर विचार, आत्मा का क्रियावत्त्व, और आत्मा के क्षणिकत्व मानने पर विचार इत्यादि विषय हैं। 8- 'आधाकम्म' शब्द पर आधाकर्म शब्द की व्युत्पत्ति और अर्थ, तीर्थकर के आधाकर्म-भोजित्व पर विचार, भोजनादिक में आधाकर्म के संभव होने का विचार,आधाकर्म-भोजियों का दारुण परिणाम, और आधाकर्म-भोजियों का कर्मबन्ध होना, इत्यादि अनेक विषय हैं। 6- 'आभिणिबोहियणाण' शब्द पर 13 विषय विचारणीय है; और 'आयंविलपच्चक्खाण' शब्द पर आचामाम्ल-प्रत्याख्यान के स्वरूप का निरूपण है। 10- 'आयरिय' शब्द पर आचार्यपद का विवेक, आचार्य के भेद; आचार्य का ऐहलौकिक और पारलौकिक स्वरूप, प्रव्राजनाचार्य, और उपस्थापनाचार्य का स्वरूप, आचार्य का विनय करना; आचार्य के लक्षण, जिनके अभाव में आचार्य नहीं हो सकता वे गुण, आचार्य के भ्रष्टाचारत्व होने में दुर्गुण, दूसरे का अहित करना भी दुर्गुण है इसका कथन, प्रमादी आचार्य के लिए शिष्य को दंड करने का अधिकार; गुरु के विनय में वैद्यदृष्टान्त, आचार्य के लिये नमस्कार करने का निरूपण, गुरु की वैयावृत्य, जिस कर्म से गच्छ का अधिपति होता है उसका निरूपण, आचार्य के अतिशय, निर्ग्रन्थयो के आचार्य, एक आचार्य के काल कर जाने पर दूसरे आचार्य के स्थापन में विधि, आचार्य की परीक्षा, आचार्य पद पर गुरू के स्थापन करने के विधि, बिना परिवार के आचार्य होने का खण्डन, स्थापन करने में वृद्ध साधुओं की सम्मति लेने की आवश्यकता, इत्यादि उत्तमोत्तम विषय हैं। ११-'आलोयणा' शब्द पर आलोचना की व्युत्पत्ति, अर्थ और स्वरूप, मूलगुण और उत्तरगुण से आलोचना के भेद, विहारादि भेद से आलोचना के तीन भेद, और उसके भी भेद, शल्य के उद्धारार्थ आलोचना करने में विधि, आलोचनीय विषयों में यथाक्रम आलोचना के प्रकार, आलोचना में शिष्याचार्य की परीक्षा पर आवश्यकदार, आलोचना लेने के स्थान, गोचरी से.आए हुए की आलोचना, द्रव्य-क्षेत्रकाल-भाव भेद से आलोचना के चार प्रकार, आलोचना का समय, तथा किसके निकट आलोचना लेनी चाहिये इस पर विचार, आसन्नमरण जीव के भी आलोचना लेने में ब्राह्मण का दष्टान्त, अदत्तालोचन पर व्याध का दृष्टान्त, आलोचना के आठ और दश स्थानक, कृत कर्मो की क्रम से आलोचना लेनी चाहिये, आलोचना न लेकर मृत होने पर दोष, और आलोचना का फल इत्यादि विषय आवश्यकीय हैं। 12- 'आसायणा' शब्द पर आशातना करने में दोष, और आशातना का फल इत्यादि विवेचन देखने के योग्य है। १३-'आहार' शब्द पर 'सयोगी केवली, अनाहारक होते हैं ' इस दिगम्बर के मत का खण्डन, केवलियों के आहार और नीहार प्रच्छन्न होते हैं इस पर विचार, पृथिवीकायिकादिकों के आहार का निरूपण, तथा वनस्पतियों का, वृक्षोपरिस्थ वृक्षों का, मनुष्यों का, तिर्यगजलचरों का, स्थलचर सादिकों का, खेचरों का, विकलेन्द्रियों का. पञ्चेन्द्रियों के मल परीषों से उत्पन्न जीवों तेजस्कायिक और वायुकायिक के आहार का निरूपण, और सचित्ताहार का प्रतिपादन यावजीव प्राणी कितना आहार करता है इसका परिमाण, आहार के कारण, आहारत्याग का कारण और आहार करने का प्रमाण, भगवान् ऋषभ स्वामी के द्वारा कन्दाहरी युगलियों का अन्नाहारी होना इत्यादि विषय हैं। 15- 'इंदिय' शब्द पर इन्द्रियों के पाँच भेद होने पर भी नामादि भेद से चार भेद, तथा द्रव्यादि भेद से दो भेद, और इन्द्रियों के संस्थान (रचना), इन्द्रियों के विषय, नेत्र और मन का अप्राप्यकारित्व, अवशिष्ट इन्द्रियों का प्राप्यकारित्व, और इन्द्रियों के गुप्तागुप्त दोष का निरूपण आदि विषय द्रष्टव्य हैं / 15- 'इत्थी' शब्द पर स्त्री के लक्षण, स्त्रियों के स्वभाव जानने की आवश्यकता, और उनके कृत्यों का वर्णन, स्त्रीसंबन्ध में दोष, स्त्रियों के साथ विहार नहीं करना, स्त्री के साथ संबन्ध होने से इसी लोक में फल, स्त्री के संसर्ग में दोष, भोगियों की विडम्बना, विश्वास देकर स्त्रियों के अकार्य करने का निरूपण, स्त्रियों के स्वरूप और शरीर की निन्दा, वैराग्य उत्पन्न होने के लिए स्त्रीचरित्र का निरीक्षण, स्त्रियों