________________ 24 बने हुए हैं, और जो कोई धर्म पर आक्षेप करता है तो उसको उन ग्रन्थों के द्वारा परास्त कर लेते हैं, यदि महर्षियों के निर्मित ग्रन्थरत्नन होते तो आज हम कुछ भी अपने धर्म की रक्षा नहीं कर सकते, इसीलिये जो जो विद्वान् आचार्य आदि होते हैं वे समयानुकूल लोगों के हित के लिये ग्रन्थ बनाते हैं। इसी शैली के अनुसार सूरीजी महाराज ने भी लोकोपयोगी अनेक ग्रन्थ बनाये हैं। सूरीजी महाराज के निर्मित संस्कृत-प्राकृत-भाषामयग्रन्थ १'अभिधानराजेन्द्र' प्राकृतमहाकोश-इस कोश की रचना बहुत सुन्दरता से की गई है अर्थात् जो बात देखना हो वह उसी शब्द पर मिल सकती है। संदर्भ इसका इस प्रकार रखा गया है-पहिले तो अकारादि वर्णानुक्रम से प्राकृतशब्द, उसके बाद उनका अनुवाद संस्कृत में, फिर व्युत्पत्ति, लिङ्गनिर्देश, और उनका अर्थ जैसा जैनागमों में मिल सकता है वैसाही भिन्न भिन्न रूप से दर्शाया गया है। बड़े बड़े शब्दों पर अधिकार सूची नम्बरवार दी गयी है, जिससे हर एक बात सुगमता से मिल सकती है। जैनागमों का ऐसा कोई भी विषय नहीं रहो जो इस महाकोश में न आया हो / केवल इस कोश के ही देखने से संपूर्ण जैनागमों का बोध हो सकता है। इसकी श्लोकसंख्या करीब साढ़े चार लाख है, और अकारादि वर्णानुक्रम से साठ हजार प्राकृत शब्दों का संग्रह है। २'शब्दाम्बुधि' कोश-इसमें केवल अकारादि अनुक्रम से प्राकृत शब्दों का संग्रह किया गया है और साथ में संस्कृत अनुवाद और उसका अर्थ हिन्दी में दिया गया है किन्तु अभिधानराजेन्द्र कोश की तरह शब्दों पर व्याख्या नहीं की हुई है। 3 सकलैश्वर्यस्तोत्र सटीक, 4 खापरियातस्करप्रबन्ध,५ शब्दकौमुदी श्लोकबद्ध, 6 कल्याणस्तोत्र प्रक्रियाटीका, 7 धातुपाठ श्लोकबद्ध, 8 उपदेशरत्नसार गद्य 6 दीपावली (दिवाली) कल्पसार गद्य, 10 सर्वसंग्रह प्रकरण (प्राकृतगाथाबद्ध) 11 प्राकृतव्याकरणविवृति। सूरीजी के संकलित संगीत ग्रन्थ 12 मुनिपति चौपाई, 13 अघटकुँवरचौपाई, 14 घ्रष्टरचौपाई, 15 सिद्धचक्रपूजा, 16 पञ्चकल्याणकपूजा, 17 चौवीसीस्तवन, 18 चैत्यवन्दनचौवीसी, 16 चौवीसजिनस्तुति। सूरीजी महाराज के रचित बालावबोध भाषाग्रन्थ२०-उपासकदशाङ्ग सूत्र बालावबोध, 21 गच्छाचारपयन्ना सविस्तर भाषान्तर, 22 कल्प सूत्र बालावबोध सविस्तर, 23 अष्टाहिकाव्याख्यान भाषान्तर, 24 चार कर्मग्रन्थ अक्षरार्थ, 25 सिद्धान्तसारसागर (बोल-संग्रह), 26 तत्त्वविवेक, 27 सिद्धान्तप्रकाश, 28 स्तुतिप्रभाकर, 26 प्रश्रोत्तरमालिका, 30 राजेन्द्रसूर्यो-दय, 31 सेनप्रश्नवीजक, 32 षड्द्रव्यचर्चा, 33 स्वरोदयज्ञानयन्त्रावली, 34 त्रैलाक्यदीपिकायन्त्रावली, 35 वासट्ठमार्गणाविचार, 36 षडावश्यक अक्षरार्थ, 37 एकसौ आठ बोल का थोकड़ा, 38 पञ्चमीदेववन्दनविधि, 36 नवपद ओली देववन्दनविधि, 40 सिद्धाचल नवाणु यात्रादेववन्दनविधि, 41 चौमासी देववन्दनविधि, 42 कमलप्रभाशुद्धरहस्य, 43 कथासंग्रह पञ्चाख्यानसार। इस प्रकार उत्तमोत्तम ग्रन्थ बनाकर सूरीजी महाराज ने जैनधर्मानुरागियों पर तथा इतर जनों पर भी पूर्ण उपकार किया है। बड़नगर के चौमासा पूरे होनेपर अपनी साधुमण्डली सहित सूरीजी ने शहर 'राजगढ़' की और विहार किया, था इस समय आपके शरीर में साधारण श्वास रोग उठा था। यद्यपि यह प्रथम जोर शोर से नहीं था तथापि उसका प्रकोप धीरे 2 बढ़ने लगा, यहाँ तक कि औषधोपचार होने पर भी वह रोग शान्त नहीं हुआ, किन्तु श्वास की बीमारी अधिक होने पर भी आप अपनी साधुक्रिया में शिथिल नहीं हुए, और सब