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आगम-सागर-कोषः (भागः-३)
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| पोंडरिय-पुण्डरीकं-श्वेताम्बुजम्। राज० ८५ पेहइ-पश्यति। उत्त०४५२।
पोंडरीअं-सप्तदशसागरोपमस्थितिकं देवविमानम। पेहति-पश्यति। प्रज्ञा० ३०५। प्रतिलेखयति प्रस्थापयति सम० ३३ वा। आव०७५६।
पोंडरीगिणी-जम्बूमहाविदेहे पुक्खलावतीविजये पेहमाणे- प्रेक्षममाणः। आव. १२४।।
राजधानी। ज्ञाता० १९१। पहा-प्रेक्ष्यतेऽनयेति प्रेक्षा दृष्टिः । दशवै. ९३। आव. पोंडरीय-पुण्डरीक-श्वेतपद्मम्। जम्बू. २६। पुण्डरीकं ७९८१
ज्ञातायां एकोनविंशतितमं ज्ञातम्। सम० ३६। प्रेक्ष्य-आलोच्य प्रेक्षया वा। उत्त० ५८ प्रेक्षा-प्रत्यपेक्षणा। पौण्डरीकं-सिताम्बुजम्। जीवा० १७७। पुण्डरीकः
बह०६०आ। प्रेक्ष्य। निशी. २२आ। निशी. २७४ । लोमपक्षिविशेषः। जीवा०४१। वित्ता। दशवै. ३८ ।
पोंडरीयदल-पुण्डरीकदलं-सिताम्बजपत्रम्। प्रज्ञा० ३६१| पेहाए- प्रेक्ष्य। भग० ७५४। प्रेक्षितं-दृष्टम्। आचा० ३९५ | पोंडरीयय- जलरुहविशेषः। प्रज्ञा० ३३॥ पेहावत्थं- प्रेक्षावस्त्रं प्रेक्षाऽऽलोकनं तत्परःसरं यदवस्त्रादि | पोंडरीया- लोमपक्षीविशेषः। प्रज्ञा०४९। याच्येत तत्। बृह० ९७ अ।
पोंडा-कप्पासो। निशी. १९१ आ। पेहाहि- प्रेक्षस्व-निरूपय लभस्वेति। सूत्र० ११६) पोअए-पोतः-बोहित्थः। आव० १२८१ प्रकर्षण उतनं प्रोतः पेहि-कथय। सूत्र. १४४
मुक्ताफलादीनां प्रोतनम्। आव० १२९। पेहित्ता-प्रेक्ष्य। आव०७८४|
पोअण-पोतनं-त्रिपृष्ठपुरम्। आव० १६२ पोतनंपेहिय- प्रेक्ष्य। सूत्र. ५५ प्रेक्षितं-अर्धकटाक्षनिरीक्षितादि। पुरुषोत्त-मवासुदेवनिदानभूमिः। आव०१६३प्रोतनंउत्त०४२८१
प्रवेशनम्। आव० ४७४।। पेहजण-पृथग्जनो लोकः। बृह. ९ अ।
पोअणपुरं-पोतनपुर नगरम्। आव० १७४, १७६) पेहुण-पिच्छम्। बृह० ६१ अ। मयूराङ्गिगिरः। बृह. ३३ | पोअया-पोतं-वस्त्रं-तद्वजरायुर्वर्जितत्वाज्जाताः, । मयूराङ्गम्। प्रश्न. १६३| प्रश्न० ८मयूरपिच्छम्। | पोतादिव वा बोहित्थाज्जाताः पोतजाः। स्था० ११४। प्रश्न० १५२। जीवा० १९१। जम्बू. ३५मयूराङ्गम्। पोआई-पोताकी-शकनिका, पोतकीविद्या। आव० ३१८1 प्रश्न. १६३। मयूरपिच्छम्। राज० ३३| निशी. ६० पोइय-पोतितं-निमग्नम्। ओघ० ६४। पेहणकलाव-मयूरङ्गकलापः। ज्ञाता०९५)
पोइया-पोतिताः-त्रासिताः। बृह. ३१७ अ। पेहणमिंजिया- पेहणमिम्जिका
पोक्कण-पोक्कणः-चिलातदेशनिवासी म्लेच्छविशेषः। मयूरपिच्छमध्यवर्तिनीमिजा। जीवा. १९११ पेहणं- प्रश्न. १४१ मयूरपिच्छं तन्मध्यवर्तिनी मिञ्जा पेहुणमिज्जा।। | पोक्खरं-पुष्करम्। आव० २९९। प्रज्ञा० ३६११
पोक्खरकण्णिआ- पुष्करकर्णिका-पद्ममध्यभागः। सम० पेहे- पश्यति। ओघ. १२७। निरूपयति। ओघ. १३३॥ १३७ पेहेति-पडिलेहित्ति। निशी. २०८ अ।
पोक्खरगय-पुष्करं-मृदङ्गमङ्ग्यादिभेदभिन्नं पोंड-पौण्डं-फलम्। प्रश्न० ८२ पुण्डरीकं-पद्मम्। आव० तद्विषयकं विज्ञानं पुष्करगतम्। जम्बू. १३७
अष्टमिकला। ज्ञाता० ३८५ पोंडमया-खोम्मा। निशी० २५४ आ।
पोक्खरणी-पुष्करणी-वर्तुला पुष्करवती। ज्ञाता०६३, पोंडयं-पोण्डगं-वनीफलादत्पन्न कार्पासिकम्। विपा० ६७ पुष्करिणी पुष्करवती चतुष्कोणा वा। प्रश्न 1
१२॥ पुण्डजम्। उत्त० ३४२। कप्पासो। निशी० १२१ । | पोक्खरत्थिमाय- पुष्करास्थिभागः कमलबीजविभागः। पोंडरिगिणी-अञ्जनपर्वते पुष्करणी। स्था० २३०। स्था० | जम्बू. २८४। ८०
| पोक्खल- पद्मकेसरम्। आचा० ३४९। जलरुहविशेषः।
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मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [३]