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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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पञ्चाद् अकुब्जीकृताः, अतः संवृत्तं तन्नगरमान। कपिञ्चुः-चित्रपिच्छपक्षिविशेषः। आचा०६९। नगरविशेषः। आव० ३९२
कपित्थं- कपेरिव लम्बते, त्थेति च करोतीति कपित्थम्। कन्नधार-कर्णधारः। निर्यामकः। ज्ञाता० १३६।
अनुयो० १५०| फलविशेषः। प्रज्ञा० १० दशवै० १०० कन्नपाउरणदीवे-कर्णप्रावरणद्वीपः। अन्तद्वीपविशेषः। | कपिल-स्वयंबुद्धविशेषः। बृह. १८७ आ। प्रत्येकबुद्धस्था० २२६।
विशेषः। उत्त०५ मतविशेषप्ररूपकः। उत्त. २६६। कन्नपालो- कर्णपालः। अलोभोदाहरणे मेण्ढः। आव० कपिलदरिसण-मतविशेषः। आचा. १६३। ७०१॥
कपिहसितं-विरलवानरमुखहीसतम्। ओघ० २०११ कन्नपीढ- कर्णावेव पीठे आसने कण्डलाधारत्वात् कपोत-पक्षिविशेषः। आचा० ३१४॥ कर्णपीठम्। स्था० ४२१|
कपोय-कपोतः। लोमपक्षिविशेषः। जीवा० ४११ कन्नवेयणा-कर्णवेदना। श्रोत्रपीडा। भग० १९७
कपोलपाली-गण्डरेखा। जीवा. २७६। कन्नस-कनिष्ठम्। लघ, जघन्यम्। उत्त० २३५। कप्प- वत्थपुप्फचम्मादि वा कप्पं, रुक्खादि वा कप्पं। कन्नसर-कर्णसरः। कर्णगामी। दशवै. २५३।
निशी० ७१ अ। कल्पत इति कल्पः स्वकार्य करणसाकन्नाघाओ-कर्णाघातः। आव० ७१९)
मोपेतः। भग० १५५। कल्पः-बृहत्कल्पः। सप्तमनिकन्नामोडओ-कर्णामोटकः। आव० ४८५।
युक्तिस्थानम्। आव०६१। आव०७९३। कल्पं-कम्बकन्नारोडयं-कर्णस्फोटम्। ब्रह. २८ आ।
ल्यादिरूपम्। ओघ० ३४। कल्पः। अनुयो० १७१। तथाकन्नालीयं-कन्यालीकम्। कन्याविषयमनृतम्, विधसमाचारप्रतिपादकः। ज्ञाता० ११० कल्पःअभिन्नकन्य-कामेव भिन्नकन्यका वक्ति विपर्ययो तथाविध-समाचारनिरूपकं शास्त्रम्। औप. ९३। वा। आव०८२०
कत्तव्वं। निशी. २५आ। कल्पः-विकल्पः। समाचारो कन्नाहाडिया-कर्णाहता। आव०४११।
वा। औप० ३६। छेदः। स्था०४९६। दसाकप्पववहारा। कन्नाहेडयं-कर्णाटकम्। आव० २९२
निशी. १०० आ। कल्पः -आचारः। प्रज्ञा० ७० कन्निया-कर्णिका। बीजकोशः। भग. ५१३१
अपरिहार्यः। निशी. १३२ आ। कल्पः-दशाश्रुतमध्यगण्डिका। कर्णिका। कर्णिका नाम
स्कन्धकल्पव्यवहाराः। व्यव० ६३आ। आचारः। आचा० उन्नतसमचित्रबिन्दुकिनी। प्रज्ञा० ८५। कर्णिका- १६८, २४४। स्था० २४४। आचारो मर्यादेत्यर्थः। स्था० पत्राधारभूता। प्रज्ञा० ३७
५११। करणमाचारः। स्था० १६७। साध्वाचारः। स्था० कन्नीय-कर्णिका। भग०५१११
३७१। छेदः। स्था०४९७ जिनकल्पिकादिसमाचारः। कन्नीरहो-कर्णीरथः। प्रवहणम्। विपा०४५।
भग०६१। यतिक्रिया-कलापः। उत्त. ५०२ प्रवहणविशेषः। ज्ञाता०९३।
यतिव्यवहारः। उत्त०६१६| कल्पते-साध्वादिक्रियास् कन्नुक्कड-साधारणबादरवनस्पतिकायविशेषः। प्रज्ञा० समर्थो भवतीति कल्पो-योग्यः। उत्त० ६३६। विधिः। ३४।
नन्दी०६१। व्यवस्था स्थविरक-ल्पादिरूपा यत्र वर्ण्यते कन्नू-कांनु। कामपि। उत्त० १९४।
ग्रन्थे सः। नन्दी. २०६। देवलोकः। नन्दी० २०७१ कन्याचोलकः- यवनालकः। आव० ४२१ नन्दी० ८८1 कल्पसूत्रम्। आव ७२४। दिवसः। बृह. २२४ आ। जवनालकः। प्रज्ञा०५४२|
क्वचित्करणे। ब्रह. ३ अ। कल्पोक्त-साध्वाचारः। स्था. कन्हो-द्वारवत्यां वासुदेवः। बृहपृ० ५६ आ।
३७३। कल्पायुक्तसाध्वाचारः सामायिकपर्दक-वराटकः। ओघ० १२९। वराटः। प्रज्ञा०४९। कच्छेदोपस्थापनीयादिः। स्था० ३७४। कल्प्यन्तेकपाल-रोगविशेषः। आचा. २३५
इन्द्रसा-मानिकत्रायस्त्रिंशादिदशप्रकारत्वेन देवा कपिंजल-कपिजलः। लोमपक्षिविशेषः। जीवा०४१। एतेष्विति कल्पाः-देवलोकाः। उत्त०७०२ कपिंजलक-कपिजलकः। पक्षिविशेषः। प्रश्न०८ कम्बल्यादिरूपम्। ओघ० ३४| सम० ३८ कृत्यम्। आव०
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]