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________________ {75) अहे णं से उसू अप्पणो गरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुसंभारियत्ताए अहे वीससाए' 卐 पच्चोव-यणामेजाई तत्थ पाणाइं जाव जीवितातो ववरोवेति, एवं च णं से पुरिसे कतिकिरिए? गोयमा! जावं च णं से उसू अप्पणो गरुययाए जाव ववरोवेति तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव चउहिं किरियाहिं पुढे । जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणू ॥ निव्वत्तिए ते वि जीवा चउहि किरियाहिं । धणुपुढे चउहिं । जीवा चउहिं । ण्हारू चउहिं। उसू पंचहिं । सरे, पत्तणे, फले, हारू पंचहिं । जे वि य से जीवा अहे पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे चिटुंति ते वि यं णं जीवा काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा। __ (व्या. पु. 5/6/12) 卐 [प्र.] हे भगवन्! जब वह बाण अपनी गुरुता से, अपने भारीपन से , अपने म ॐ गुरुसंभारता से स्वाभाविकरूप ( विस्रसा प्रयोग) से नीचे गिर रहा हो, तब (ऊपर से नीचे गिरता हुआ) वह (बाण) (बीच मार्ग में) प्राण, भूत, जीव और सत्त्व को यावत् जीवन म (जीवित) से रहित कर देता है, तब उस बाण फेंकने वाले पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं? [उ.] गौतम! जब वह बाण अपनी गुरुता आदि से नीचे गिरता हुआ, यावत् जीवों 卐 को जीवन से रहित कर देता है, तब वह बाण फेंकने वाला पुरुष कायिकी आदि चार : ॐ क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से धनुष बना है, वे जीव भी चार क्रियाओं म से, धनुष की पीठ चार क्रियाओं से, जीवा (ज्या डोरी) चार क्रियाओं से, पहारू (स्नायु) म चार क्रियाओं से, बाण पांच क्रियाओं से, तथा शर, पत्र, फल और हारू पांच क्रियाओं स्पृष्ट है के होते हैं। नीचे गिरते हुए बाण के अवग्रह में जो जीव आते हैं, वे जीव भी कायिकी आदि * पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। GE [विवेचन- धनुष चलाने वाले व्यक्ति को तथा धनुष से संबंधित जीवों को उनसे लगने वाली क्रियाएं प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. 10 से 12 तक) में धनुष चलाने वाले व्यक्ति को, तथा धनुष के विविध उपकरण (अवयव) जिन-जिन जीवों के शरीरों से बने हैं उनको, बाण छूटते समय तथा बाण के नीचे गिरते समय होने वाली प्राणि-हिंसा से लगने वाली क्रियाओं का निरूपण किया गया है। किसको, क्यों, कैसे और कितनी क्रियाएं लगती हैं? - एक व्यक्ति धनुष हाथों में लेता है, फिर बाण उठाता है, उसे धनुष पर चढ़ा कर विशेष प्रकार के आसन से बैठता है, फिर कान तक बाण को खींचता और छोड़ता है। छूटा हुआ वह बाण आकाशस्थ या उसकी चपेट में आए हुए प्राणी के प्राणों का विविध प्रकार से उत्पीड़न एवं हनन करता है, ऐसी स्थिति में उस पुरुष को धनुष हाथ में लेने से छोड़ने तक में कायिकी से लेकर प्राणातिपातिकी तक पांचों क्रियाएं लगती हैं। उसी प्रकार, जिन जीवों के शरीर से धनुष, धनु:पृष्ठ, डोरी, हारू, बाण, शर, पत्र, फल आदि धनुष एवं धनुष के उपकरण बने हैं उन जीवों को भी पांच क्रियाएं लगती हैं। यद्यपि वे इस समय अचेतन हैं तथापि उन जीवों ने मरते समय अपने शरीर का व्युत्सर्ग नहीं किया था, वे अविरति के परिणाम (जो कि अशुभकर्म FFFFFFER अहिंसा-विश्वकोश/291
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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