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________________ m a 明明明明明明 SEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE व्यामोहात्सुलसाप्रियस्स सुलसः सार्द्ध स्वयं मन्त्रिणाम्, शत्रुच्छद्मविवेकशून्यहृदयः संपाद्य हिंसाक्रियाम्। नष्टो गन्तुमधः क्षितिं दुरितिनामकूरनाशं मुधा, दुष्कर्माभिरतस्य किं हि न भवेदन्यस्य चेदग्विधम् ॥ (472) मोहनीय कर्म के उदय से जिसका हृदय शत्रुओं का छल समझने वाले विवेक से शून्य था, ऐसा राजा सगर) जरानी सुलसा और विश्वभू मंत्री के साथ स्वयं हिंसामय क्रियाएं कर अधोगति में जाने के लिए नष्ट हुआ। जब राजा की卐 ॐ यह दशा हुई तब जो अन्य साधारण मनुष्य अपने क्रूर परिणामों को नष्ट न कर व्यर्थ ही दुष्कर्म में तल्लीन रहते हैं, उनकी क्या ऐसी दशा नहीं होगी? अवश्य होगी। स्वाचार्यवर्यमनुसृत्य हितानुशासी, वादे समेत्य बुधसंसदि साधुवादम्। श्रीनारदो विहितभूरितपाः कृतार्थः, सर्वार्थसिद्धिमगमत् सुधियामधीशः॥ (473) जिसने अपने श्रेष्ठ आचार्य गुरु का अनुसरण कर हित का उपदेश दिया, विद्वानों की सभा में शास्त्रार्थ कर जिसने साधुवाद-उत्तम प्रशंसा प्राप्त की, जिसने बहुत भारी तप किया और जो विद्वानों में श्रेष्ठ था, ऐसा श्रीमान् नारद कृतकृत्य होकर सर्वार्थ-सिद्धि (देवलोक) गया। 明明明%%%%%%%%%%%%%弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱 野野野野野野野野野野野野野野野防野野野野野野野野野野野野野野野野野野野野野。 अहिंसा-विश्वकोश/515]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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