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________________ तापसैरभ्यधायीति सर्वप्राणिहितैषिभिः। विश्वभूरिदमाकर्ण्य तापसा भोः कथं मया ॥ (391) दृष्टं . शक्यमपलोतुं साक्षात्स्वर्गस्य साधनम्। इति ब्रुवन् पुनर्नारदेनोक्तः पापभीरुणा॥ (392) अमात्योत्तम विद्वांस्त्वं किमिति स्वर्गसाधनम्। सगरं सपरीवारं निर्मूलयितुमिच्छता ॥ (393) उपायोऽयं व्यधाय्येवं प्रत्यक्षफलदर्शनात्। केनचित्कुहुकज्ञेन मुग्धानां मोहकारणम् ॥ (394) सब प्राणियों का हित चाहने वाले तपस्वियों ने इस प्रकार कहा, परन्तु विश्वभू मंत्री ने इसे सुन कर कहा कि हे तपस्वियों! जो यह प्रत्यक्ष ही स्वर्ग का साधन दिखाई दे रहा है, उसका अपलाप किस प्रकार किया जा सकता है? | तदनन्तर इस प्रकार कहने वाले विश्वभू मंत्री से पापभीरु नारद ने कहा कि हे उत्तम मंत्रिन्! तू तो विद्वान् है, क्या यह जसब स्वर्ग-साधन है? अरे, राजा सगर को परिवार सहित निर्मूल नष्ट करने की इच्छा करने वाले किसी मायावी ने इस तरह प्रत्यक्ष फल दिखा कर यह उपाय रचा है, यह उपाय केवल मूर्ख मनुष्यों को ही मोहित करने का कारण है। ततः $$$$$$$$$$$$$$$$$ शीलोपवासादिविधिमार्थागमोदितम्। आचरेति स तं प्राह पर्वतं नारदोदितम् ॥ (395) श्रुतं त्वयेत्यसौ शास्त्रेणासरोक्तेन दुर्मतिः। मोहितो नारदेनापि प्रागिदं किं न वा श्रुतम्॥ (396) ममास्य च गुरुनान्यो मत्पितैवातिगर्वितः। समत्सरतयाऽप्येष मय्यद्य किमिवोच्यते ॥ (397) स श्रुतो मद्गुरोर्धर्मभ्राता जगति विश्रुतः। स्थविरस्तेन च श्रौत रहस्यं प्रतिपादितम्॥ (398) यागमृत्युफलं साक्षान्मयाऽपि प्रकटीकृतम्। न चेत् ते प्रत्ययो विश्ववेदाम्भोनिधिपारगम्॥ (399) वसुं प्रसिद्ध सत्येन पृच्छे रित्यन्वभाषत । तच्छ्रुत्वा नारदोऽवादीत्को दोषः पृच्छयतामसौ॥ (400) %%%弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱顕品弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱 इसलिए तू ऋषिप्रणीत आगम में कही हुई शील तथा उपवास आदि की विधि का आचरण कर। इस प्रकार नारद के वचन सुन कर विश्वभू ने पर्वत से कहा कि तुमने नारद का कहा सुना? महाकाल असुर के द्वारा कहे शास्त्र से मोहित हुआ दुर्बुद्धि पर्वत कहने लगा कि यह शास्त्र क्या नारद ने भी पहले कभी नहीं सुना? इसके और मेरे गुरु पृथक् ॐ नहीं थे, मेरे पिता ही तो दोनों के गुरु थे, फिर भी यह अधिक गर्व करता है। मुझ पर ईर्ष्या रखता है, अत: चाहे जो भी ॐ कह बैठता है। विद्वान् स्थविर मेरे गुरु के धर्म भाई तथा जगत् में प्रसिद्ध थे, उन्होंने मुझे यह श्रुतियों का रहस्य बतलाया है ॐ है। यज्ञ में मरने से जो फल होता है, उसे मैंने भी आज प्रत्यक्ष दिखला दिया है, फिर भी यदि तुझे विश्वास नहीं होता 卐 है तो समस्त वेदरूपी समुद्र के पारगामी राजा वसु से जो कि सत्य के कारण प्रसिद्ध हैं, पूछ सकते हो। यह सुनकर ॐ नारद ने कहा कि क्या दोष है, वसु से पूछ लिया जाए। HEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET (जैन संस्कृति खण्ड/506
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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