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________________ $$$$$$$$$$$$$$ 作 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐, ब्राह्मण: पूज्य: सर्वशास्त्रविशारदः । तत्रैव अभूत् क्षीरकदम्बाख्यो विख्यातोऽध्यापकोत्तमः ॥ (258) समीपे तस्य तत्सूनुः पर्वतोऽन्यश्च नारदः । देशान्तरगतच्छात्रस्तुग्वसुश्च महीपतेः ॥ (259) उसी नगर में एक क्षीरकदम्ब नामक पूज्य ब्राह्मण रहता था। वह समस्त शास्त्रों का विद्वान् था और प्रसिद्ध श्रेष्ठ अध्यापक था। उसके पास उसका लड़का पर्वत, दूसरे देश से आया हुआ नारद और राजा का पुत्र वसु- ये तीन छात्र एक साथ पढ़ते थे । एते त्रयोऽपि विद्यानां पारमापत् स पर्वतः । तेष्वधीर्विपरीतार्थग्राही मोहविपाकतः ॥ (260) ते त्रयोऽप्यगुः । शेषौ यथोपदिष्टार्थग्राहिणौ वनं दर्भादिकं चेतुं सोपाध्यायाः कदाचन ॥ (261) ये तीनों ही छात्र विद्याओं में पारंगत थे, परंतु उन तीनों में पर्वत निर्बुद्धि था, वह मोह के उदय से सदा विपरीत अर्थ ग्रहण करता था। बाकी दो छात्र पदार्थ का स्वरूप जैसा गुरु बताते थे वैसा ही ग्रहण करते थे। किसी एक दिन ये तीनों अपने गुरु के साथ कुशा आदि लाने के लिए वन में गए थे । गुरु: श्रुतधरो नाम तत्राचलशिलातले । स्थितो मुनित्रयं तस्मात्कृत्वाऽष्टाङ्गनिमित्तकम् ॥ (262) तत्समाप्तौ स्तुतिं कृत्वा सुस्थितं तन्निरीक्ष्य सः । तत्र पुण्यपरीक्षार्थ समपृच्छन्मुनीश्वरः ॥ (263) पठच्छात्रत्रयस्यास्य नाम किं कस्य किं कुलम् । को भाव का गतिः प्रान्ते भवद्भिः कथ्यतामिति ॥ (264) [ जैन संस्कृति खण्ड /492 वहां एक पर्वत की शिला पर श्रुतधर नाम के गुरु विराजमान थे। अन्य तीन मुनि उन श्रुतधर गुरु अष्टां ! निमित्तज्ञान का अध्ययन कर रहे थे। जब अष्टांगनिमित्त ज्ञान का अध्ययन पूर्ण हो गया, तब वे तीनों मुनि उन गुरु की स्तुति कर बैठ गए। उन्हें बैठा देख कर श्रुतधर मुनिराज ने उनकी चतुराई की परीक्षा करने के लिए पूछा कि 'जो ये तीन छात्र बैठे हैं, इनमें किसका क्या नाम है? क्या कुल है? क्या अभिप्राय है? और अन्त में किसी क्या गति होगी ? यह आप लोग कहें ॥' $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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