________________
EFFE REFEREFEREFEEEEEEEEEEE
अनन्तकाल चारों गतियों में भ्रमण करते हुए घटीयंत्र की तरह सभी प्राणियों ने मेरा बहुत उपकार किया है, अतः उनमें मित्रताकी भावना होना 'मैत्री' है। असह्य शारीरिक, आगन्तुक, मानसिक, और स्वाभाविक दुःख को भोगते हुए प्राणियों को देख कर, अरे बेचारे ॥ मिथ्यादर्शन, अविरति, कषाय और अशुभ कर्मरूप पुद्गल स्कन्धों के उदय से उत्पन्न हुई है
विपदाओं को विवश होकर भोगते हैं। इस प्रकार के भाव को 'करुणा' या 'अनुकंपा' कहते म हैं। यतियों के गुणों का चिन्तन करना 'मुदिता' है। यतिगण विनयी, रागरहित, भयरहित, 卐 卐 मानरहित, रोषरहित और लोभरहित होते हैं, इत्यादि चिन्तन 'मुदिता' है। सुख में राग और - दुःख में द्वेष न करना 'उपेक्षा' है।
弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱y弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱
{1150) मैत्री-प्रमोद-कारुण्य-माध्यस्थ्यपरिचिन्तनम्। सत्त्व-गुणाधिकक्लिश्यमानाप्रज्ञाप्यगोचरम् ॥
(यो.बि. 402) साधक को चाहिए, वह संसार के सभी प्राणियों के प्रति मैत्री, अधिक गुणसम्पन्न ॐ पुरुषों को देख मन में प्रसन्नता, कष्ट-पीड़ित लोगों के प्रति करुणा तथा अज्ञानी जनों के प्रति माध्यस्थ्य-तटस्थता की भावना से अनुभावित-अपने दैनन्दिन चिंतन में अनुप्राणित रहे।
. {1151} . सत्तेसु ताव मेत्तिं तहा पमोयं गुणाहिएK ति। करुणामज्झत्थत्ते किलिस्समाणाविणीएसु ॥
(यो.श. 79) ॥ सभी प्राणियों के प्रति मैत्री-भाव, गुणाधिक-गुणों के कारण विशिष्टसद्गुणसम्पन्न पुरुषों के प्रति प्रमोद-भाव अर्थात् उन्हें देख कर मन में प्रसन्नता का 卐 अनुभव करना, दुःखियों के लिए करुणा-भाव, अविनीत-उद्धत जनों के प्रति उदासीन
भाव रखना चाहिए।
EFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN
अहिंसा-विश्वकोश।4651