SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 491
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 新卐卐卐卐卐编编编编考 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐编编编卐卐 (1146) कायेन मनसा वाचाऽपरे सर्वत्र देहिनि । 米 अदुःखजननी वृत्तिर्मैत्री मैत्रीविदां मता ॥ तपो गुणाधिके पुंसि प्रश्रयाश्रयनिर्भरः । जायमानो मनोरागः प्रमोदो विदुषां मतः ॥ दीनाभ्युद्धरणे बुद्धिः कारुण्यं करुणात्मनाम् । हर्षामर्षोज्झिता वृत्तिर्माध्यस्थ्यं निर्गुणात्मनि ॥ इत्थं प्रयतमानस्य गृहस्थस्यापि देहिनः । करस्थो जायते स्वर्गो नास्य दूरे च तत्पदम् ॥ सब जीवों से मैत्री भाव रखना चाहिए। जो गुणों में अधिक हों उनके प्रति प्रमोद (उपासका 26/334-338) भाव रखना चाहिए । दुःखी जीवों के प्रति करुणा भाव रखना चाहिए। और जो निर्गुण हों, का असभ्य और उद्धत हों उनके प्रति माध्यस्थ्य भाव रखना चाहिए।' अन्य सब जीवों को दुःख न हो' मन, वचन और काय से इस प्रकार का बर्ताव करने को 'मैत्री' कहते हैं । तप आदि ברכב दयालु पुरुषों की 'गरीबों के उद्धार करने की भावना को 'कारुण्य' कहते हैं । उद्धत तथा गुणों से विशिष्ट पुरुष को देखकर जो विनयपूर्ण हार्दिक प्रेम उमड़ता है उसे 'प्रमोद' कहते हैं । 馬 मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थ्यानि यथाक्रमम् । सत्त्वगुणाधिक्लष्टे निर्गुणेऽपि च भावयेत् ॥ יברבבבב $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ असभ्य पुरुषों के प्रति राग और द्वेष के न होने को 'माध्यस्थ्य' कहते हैं। जो प्राणी गृहस्थ होकर भी इस प्रकार का प्रयत्न करता है, स्वर्ग तो उसके हाथ में है और मोक्ष भी दूर नहीं है । 卐 (1147) 馬 (Haf. 7/11/683) 卐 अहिंसा - विश्वकोश | 463] 馬 परेषां दुःखानुत्पत्त्यभिलाषो मैत्री । वदनप्रसादादिभिरभिव्यज्यमानान्तर्भवितरागः प्रमोदः । 馬 दीनानुग्रह भावः कारुण्यम् । रागद्वेषपूर्वकपक्षपाताभावो माध्यस्थ्यम् । दुष्कर्मविपाकवशानानायो निषु सीदन्तीति सत्त्वा जीवाः । सम्यग्ज्ञानादिभिः प्रकृष्टा गुणाधिकाः । F असद्वेद्योदयापादितक्लेशाः क्लिश्यमानाः । तत्त्वार्थ श्रवणग्रहणाभ्यामसंपादितगुणा अविनेयाः । 卐 卐 एतेषु सत्त्वादिषु यथासंख्यं मैत्र्यादीनि भावयितव्यानि । सर्वसत्त्वेषु मैत्री, गुणाधिकेषु प्रमोदः, 節 क्लिश्यमानेषु कारुण्यम्, अविनेयेषु माध्यस्थ्यमिति । एवं भावयत: पूर्णान्यहिंसादीनि व्रतानि भवन्ति । 卐 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy