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________________ LELELELELELELELELELELELELEUCUELELELELEUCLEUEUEUEUEUEUEUEUEUEUE 12 בתפהפיפיפיפיפיפהפכתכתכתבתצהבהבחנתפתתפתפתחנתפתתפתפתפתפתפתכתבנו {1141) फणमात्रोद्गता रन्ध्रात् फणिनः शितयोऽद्युतन्। कृताः कुवलयैरर्घा मुनेरिव पदान्तिके ॥ रेजुर्वनलता नः शाखाग्रैः कुसुमोज्ज्वलैः। मुनिं भजन्त्यो भक्त्येव पुष्पा(नतिपूर्वकम् ॥ ____ (आ. पु. 36/172-173) बामी के छिद्रों से जिन्होंने केवल फण ही बाहर निकाले हैं, ऐसे काले सर्प उसके समय ऐसे जान पड़ते थे मानो मुनिराज के चरणों के समीप किसी ने नील-कमलों का अर्घ 卐 ही बना कर रखा हो। वन की लताएं फूलों से उज्ज्वल तथा नीचे से झुकी हुई छोटी-छोटी ॥ डालियों से ऐसी अच्छी सुशोभित हो रहीं थीं, मानो फूलों का अर्घ लेकर भक्ति से नमस्कार म करती हुई वे मुनिराज की सेवा ही कर रही हों। {1142) 弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱化 शश्वद्विकासिकुसुमैः शाखाग्रैरनिलाहतैः। बभुर्वनगुमास्तोषान्निनृत्सव इवासकृत् ॥ कलैरलिरुतोद्गानैः फणिनो ननृतुः किल। उत्फणाः फणरत्नांशुदीप्रैर्भोगैर्विवर्तितैः॥ (आ. पु. 36/174-175) वन के वृक्ष, जिन पर सदा फूल खिले रहते हैं और जो वायु से हिल रहे हैं, ऐसे ॐ शाखाओं के अग्रभागों से ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानो सन्तोष से बार-बार नृत्य ही है करना चाहते हों। जिनके फण ऊंचे उठ रहे हैं ऐसे सर्प, भ्रमरों के शब्दरूपी सुन्दर गाने के साथ-साथ फणाओं पर लगे हुए रत्नों की किरणों से देदीप्यमान अपने फणाओं को ॐ घुमा-घुमाकर नृत्य कर रहे थे। ALELELELELELELELELELELELEUCLELELELELELELELELELELELELELELELELEY अहिंसा-विश्वकोश।4611
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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