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________________ YEHREEEEEEEEE24 [1136) जन्मानुबन्धवैरो यः सर्वोऽहिनकुलादिकः। तस्यापि जायतेऽजय संगतं सुगताज्ञया । (ह. पु. 59/86) __ (भ. ऋषभदेव तीर्थंकर के विहार -क्षेत्र में) जो सांप, नेवला आदि समस्त जीव जन्म से ही वैर रखते थे, उन सभी में भगवान् की आज्ञा से अखण्ड मित्रता हो गयी थी। 11371 弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱頭叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩叩 सारङ्गी सिंहशावं स्पृशति सुतधिया नन्दिनी व्याघ्रपोतम्, मार्जारी हंसबालं प्रणयपरवशा केकिकान्ता भुजङ्गम्। वैराण्याजन्मजातान्यपि गलितमदा जन्तवोऽन्ये त्यजन्ति, श्रित्वा साम्यैकरूढं प्रशमितकलुषं योगिनं क्षीणमोहम्॥ (ज्ञा. 22/26/1172) जिस योगी ने मोह से रहित होकर पाप को शान्त कर दिया है और असाधारण साम्य 9 भाव को प्राप्त कर लिया है, उसका आश्रय पाकर मृगी भी सिंह के बच्चे को पुत्र के समान है स्नेह से स्पर्श करती है, गाय व्याघ्र के बच्चे से बछड़े के समान प्रेम करती है, बिल्ली हंस के बच्चे से स्नेह करती है, तथा मयूरी स्नेह के वशीभूत होकर सर्प का स्पर्श करती है। इसी ॐ प्रकार, अन्य प्राणी भी अभिमान से रहित होकर उक्त योगी के प्रभाव से अपने जन्मजात ॐ वैरभाव को भी छोड़ देते हैं। 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ___{1138) तत्पदोपान्तविश्रान्ता विस्रब्धा मृगजातयः। बबाधिरे मृगैर्नान्यैः क्रूरैरक्रूरतां श्रितैः॥ विरोधिनोऽप्यमी मुक्तविरोधस्वैरमासिताः। तस्योपाञ्जीभसिंहाद्याः शशंसुर्वैभवं मुनेः॥ (आ. पु. 36/164-165) उन (भगवान् बाहुबलि) के चरणों के समीप विश्राम करने वाले मृग आदि पशु 卐 सदा विश्वस्त अर्थात् निर्भय रहते थे, उन्हें सिंह आदि दुष्ट जीव कभी बाधा नहीं पहुंचाते थे 5 क्योंकि वे स्वयं वहां आकर अक्रूर अर्थात् शान्त हो जाते थे। उनके चरणों के समीप हाथी, सिंह आदि विरोधी जीव भी परस्पर का वैर-भाव छोड़ कर इच्छानुसार उठते-बैठते थे और * इस प्रकार वे मुनिराज के ऐश्वर्य को सूचित करते थे। ALELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELEMELELELELELELER अहिंसा-विश्वकोश/459]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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