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________________ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐 卐 强生 馬 सुसमाधियुक्त संयमी (साधु-साध्वी) मन, वचन, काया- इस त्रिविध योग तथा कृत, 馬 卐 ! कारित और अनुमोदन - इस त्रिविध करण से त्रसकायिक जीवों की हिंसा नहीं करते । (43) सकाय की हिंसा करता हुआ (साधु) उसके आश्रित रहे हुए अनेक प्रकार के चाक्षुष 事 (दृश्यमान) और अचाक्षुष (अदृश्य) त्रस और स्थावर प्राणियों की हिंसा करता है। (44) 筑 इसलिए इसे दुर्गतिवर्द्धक दोष जान कर (साधुवर्ग) जीवनपर्यन्त त्रसकाय के 馬 馬 समारम्भ का त्याग करे। (45) 筑 רכרכרכרכרכרכר (1071) तसकायं न हिंसंति मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ॥ (43) तसकायं विहिंसंतो, हिंसई उ तदस्सिए । तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे ॥ (44) तम्हा एवं वियणित्ता, दोसं दोग्गइ-वड्ढणं । तसकाय-समारंभं जावज्जीवाए वज्जए ॥ ( 45 ) ELELEL (दशवै. 6 / 306-308) (1072) कम्मं परिण्णाय दगंसि धीरे वियडेण जीवेज्ज य आदिमोक्खं । से बीयकंदाइ अभुंजमाणे विरए सिणाणाइसु इत्थियासु ॥ (सू.कृ. 1/7/22) 'जल के समारंभ से कर्म-बंध होता है'- ऐसा जान कर धीर मुनि मृत्यु - पर्यन्त निर्जीव जल से जीवन बिताए । वह बीज, कंद आदि न खाए, स्नान आदि तथा स्त्रियों से विरत रहे। (1073) तस - थावराण वहणं होइ, पुढवि-तण-कट्ठ - निस्सियाणं । तम्हा उद्देसियं न भुंजे, नो वि पए, न पयावए जे, स भिक्खू ॥ (4) (दशवै. 10 / 524) (भोजन बनाने में ) पृथ्वी, तृण और काष्ठ के आश्रित रहे हुए त्रस और स्थावर जीवों का वध होता है। इसलिए जो औद्देशिक (आदि दोषों से युक्त आहार) का उपभोग नहीं करता तथा जो (अन्नादि) स्वयं नहीं पकाता और न दूसरों से पकवाता है, वह सद्भिक्षु है । (4) 编 अहिंसा - विश्वकोश / 437]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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