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________________ GEETEEEEEEEEEEEEEEEEENA (1048) लज्जमाणा पुढो पास। अणगारा मो' ति एगे पवयमाणा, जमिणं विरूवरूवेहिं ॥ सत्थेहिं वाउकम्मसमारंभेणं वाउसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवता परिण्णा पवेदिता-इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणण-पूयणाए जाती-मरण-मोयणाए दुक्खपडिघातहेतुं से सयमेव वाउसत्थं है समारभति, अण्णेहिं वा वाउसत्थं समारभावेति, अण्णे वा वाउसत्थं समारभंते कसमणुजाणति। तं से अहियाए, तं से अबोधीए। से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा भगवतो अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णातं भवति-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु 卐णिरए। इच्चत्थं गढिए लोगे, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वाउकम्मसमारंभेणं वाउसत्थं समारभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति। से बेमि-संति संपाइमा पाणा आहच्च संपतंति य। फरिसं च खलु पुट्ठा एगे संघायमावज्जंति। जे तत्थ संघायमावजंति ते तत्थ परियाविजंति। जे तत्थ परियाविजंति ते तत्थ उद्दायंति। एत्थ सत्थं समारभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति। एत्थ सत्थं असमारभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाता भवंति। 卐 तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं वाउसत्थं समारभेजा, णेवऽण्णेहिं वाउसत्थं है समारभावेजा, णेवऽण्णे वाउसत्थं समारभंते समणुजाणेजा।जस्सेते वाउसत्थसमारंभा में परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिणायकम्मे त्ति बेमि। (आचा. 1/1/7 सू. 57-61) तू देख! प्रत्येक संयमी पुरुष हिंसा में लजा/ग्लानि का अनुभव करता है। उन्हें भी है देख, जो 'हम गृहत्यागी हैं' यह कहते हुए विविध प्रकार के शस्त्रों/साधनों से वायुकाय का समारंभ करते हैं। वायुकाय-शस्त्र का समारंभ करते हुए अन्य अनेक प्राणियों की हिंसा करते हैं। इस विषय में भगवान ने परिज्ञा/विवेक का निरूपण किया है। कोई मनुष्य, इस जीवन के लिए, प्रशंसा, सन्मान और पूजा के लिए, जन्म, मरण और मोक्ष के लिए, दुःख C का प्रतीकार करने के लिए स्वयं वायुकाय-शस्त्र का समारंभ करता है, दूसरों से वायुकाय 卐 का समारंभ करवाता है तथा समारंभ करने वालों का अनुमोदन करता है। NEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET [जैन संस्कृति खण्ड/424 25%弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱$$$$$$$$$$$$
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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