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________________ LE E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E5 E51 E5 E5 E5% FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFEEEEP {1044} आउकायं न हिं संति मणसा वयसा कायसा। तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ॥ (29) आउकायं विहिंसंतो हिंसई उ तदस्सिए। तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे ॥ (30) तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं दोग्गइवड्ढणं। आउकाय-समारंभं जावजीवाए वज्जए॥ (31) (दशवै. 6/292-294) सुसमाधिमान् संयमी मन, वचन और काय- इस त्रिविध योग से तथा कृत, कारित म और अनुमोदन- इस त्रिविध करण से अप्काय की हिंसा नहीं करते। (29) अप्कायिक जीवों की हिंसा करता हुआ (साधक) उनके आश्रित रहे हुए विविध चाक्षुष (दृश्यमान) और अचाक्षुष (अदृश्यमान) त्रस और स्थावर प्राणियों की हिंसा करता है। (30) इसलिए इसे दुर्गतिवर्द्धक दोष जान कर (साधुवर्ग) यावज्जीवन अप्काय के समारम्भ का त्याग करे। (31) (1045) वाहिओ वा अरोगी वा सिणाणं जो उ पत्थए। वोक्कंतो होइ आयारो, जढो हवइ संजमो॥ (60) संतिमे सुहुमा पाणा घसासु भिलुगासु य। जे उ भिक्खू सिणायंतो, वियडेणुप्पिलावए । (61) तम्हा ते न सिणायंति सीएण उसिणेण वा। जावज्जीवं वयं घोरं असिणाणमहिट्ठगा॥ (62) (दशवै. 6/323-325) रोगी हो या नीरोगी, जो साधु ( या साध्वी) स्नान करने की इच्छा करता है, उसके आचार का अतिक्रमण (उल्लंघन) हो जाता है, उसका संयम भी त्यक्त (शून्यरूप) हो जाता है। (60) * यह तो प्रत्यक्ष है कि पोली भूमि में और भूमि की दरारों में सूक्ष्म प्राणी होते हैं। प्रासुक 卐 जल से भी स्नान करता हुआ भिक्षु उन्हें (जल से) प्लावित कर (बहा) देता है। (61) 卐 इसलिए वे (संयमी साधु-साध्वी)शीतल या उष्ण जल से स्नान नहीं करते। वे जीवन भर घोर अस्नान व्रत पर दृढ़ता से टिके रहते हैं। (62) REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET अहिंसा-विश्वकोश/4211
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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