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________________ UguelCLELEUCLEUEUEUEUEUELELCLCLCLCLCLCLCLEUEUEUEUEUEUEUEUEUEUE {1005) संज्ञादि-परिहारेण यन्मौनस्यावलम्बनम्। वाग्वृत्तेः संवृतिर्वा या सा वाग्गुप्तिरिहोच्यते ॥ (है. योग. 1/42) ___संज्ञादि (इशारे आदि) का त्याग करके मौन का आलम्बन करना अथवा वचन की 卐 प्रवृत्तियों को रोकना या सम्यक् वचन की ही प्रवृत्ति करना 'वचनगुप्ति' कहलाती है। 听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明 {1006) विमुक्तकल्पनाजालं समत्वे सुप्रतिष्ठितम्। आत्मारामं मनस्तज्ज्ञैर्मनोगुप्तिरुदाहृता॥ (है. योग. 1/41) मन की कल्पना-जाल से मुक्ति, समभाव में स्थिरता और आत्मस्वरूप के चिन्तन में रमणता के रूप में रक्षा करना- इसे पंडित पुरुषों ने 'मनोगुप्ति' कहा है। {1007) जा रागादिणियत्ती मणस्स जाणाहि तं मणोगुत्तिं । (भग. आ. 1181) मन की जो रागादि से निवृत्ति है, उसे 'मनोगुप्ति' जानो। वाग्गुप्ति और भाषा समिति में अन्तर {1008) व्यलीकात्परुषादात्मप्रशंसापरात् परनिन्दाप्रवृत्तात्परोपद्रवनिमित्ताच्च वचसो म व्यावृत्तिरात्मनस्तथाभूतस्य वचसोऽप्रवर्तिका वाग्गुप्तिः। यां वाचं प्रवर्तयन् अशुभं कर्म स्वीकरोत्यात्मा तस्या वाच इह ग्रहणं वाग्गुप्तिरित्यत्र तेन वाग्विशेषस्यानुत्पादकता *वाचः परिहारो वाग्गुप्तिः। मौनं वा सकलाया वाचो या परिहतिः सा वाग्गुप्तिः। अयोग्यवचनेऽप्रवृत्तिः प्रेक्षापूर्वकारितया योग्यं तु वक्ति वा न वा। भाषासमितिस्तु 卐 योग्यवचसः कर्तृता, ततो महान्भेदो गुप्तिसमित्योः। मौनं वाग्गुप्तिरत्र स्फुटतरो वचोभेदः। 卐 योग्यस्य वचसः प्रवर्तकता। वाचः कस्याश्चित्तदनुत्पादकतेति ॥ (भग. आ. विजयो. 1181) 明明明明明 יפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפתפּתפתפתכתנתפתלתמתנהלהלהלהלהלהלהלהלה תעמ [जैन संस्कृति खण्ड/404
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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