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________________ T TERRORSEEEEEEEEEEEEEEEEM 19801 पिण्डशुद्धिविधानेन शरीर स्थितये तु यत् । आहारग्रहणं सा स्यादे। 'गासगितिर ते:॥ (ह. पु. 2/124) शरीर की स्थिरता के लिए पिण्डशुद्धिपूर्वक मुनि का जो आहार ग्रहण करना है, वह 'एषणा समिति' कहलाती है। (10) 19811 ____गवेसणाए गहणे य परिभोगेसणा य जा। आहारोवहि-सेजाए एए तिनि विसोहए॥ (उत्त. 24/11) गवेषणा, ग्रहणैषणा और परिभोगैषणा से आहार, उपधि और शय्या (में सम्भावित दोषों) का परिशोधन करे। 1982 उग्गमुप्पायणं पढमे बीए सोहेज एसणं। परिभोयंमि चउक्कं विसोहेज जयं जई। (उत्त. 24/12) यतनापूर्वक प्रवृत्ति करने वाला यति प्रथम एषणा (आहारादि की गवेषणा) में उद्गम और उत्पादन दोषों का शोधन करे। दूसरी एषणा (ग्रहणैषणा) में आहारादि ग्रहण करने से सम्बन्धित दोषों का शोधन करे। परिभोगैषणा में दोष-चतुष्क का शोधन करे। 1983) आरंभे जीववहो अप्पासुगसेवणे य अणुमोदो। आरंभादीसु मणो णाणरदीए विणा चरइ॥ ___(भग. आ. 814) पृथिवी आदि के विषय में जो खोदना आदि व्यापार किया जाता है उसे 'आरम्भ' कहते हैं। उसके करने पर पृथिवी आदि में रहने वाले जीवों का घात होता है। उद्गम आदि दोषों-से युक्त आहार ग्रहण करने पर जीव-समूह के वध की अनुमोदना होती है, ज्ञान में 卐 लीनता न होने पर आरम्भ और कषाय में मन की प्रवृत्ति होती है। 卐 ELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELELEJE अहिंसा-विश्वकोश/395]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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