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________________ $ $ $ $ $ $ $ 卐F R EEEEEEEEEEEEENA {969) अप्पणट्ठा परट्ठा वा, कोहा वा जइ वा भया। हिंसगं न मुसं बूया, नो वि अन्नं वयावए॥ (11) मुसावाओ अ लोगम्मि, सव्वसाहू हिं गरहिओ। अविस्साओ य भूयाणं, तम्हा मोसं विवज्जए॥ (12) (दशवै. 6/274-275) (निर्ग्रन्थ साधु या साध्वी) अपने लिए या दूसरों के लिए, क्रोध से अथवा (मान, माया और क्रोध से) या भय से हिंसाकारक (परपीडाजनक सत्य) और असत्य (मृषावचन) 卐न बोले, (और) न ही दूसरों से बुलवाए, (और न बोलने वालों का अनुमोदन करे)। (11) (इस समग्र) लोक में समस्त साधुओं द्वारा मृषावाद (असत्य) गर्हित (निन्दित) है और वह प्राणियों के लिए अविश्वसनीय है। अतः (निर्ग्रन्थ) मृषावाद का पूर्ण रूप से # परित्याग कर दे। (12) $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ $ {970) हास्य-लोभ-भय-क्रोध-प्रत्याख्यानै निरन्तरम्। आलोच्य भाषणेनापि भावयेत् सूनृतव्रतम्॥ (है. योग. 1/27) हास्य, लोभ, भय और क्रोध के त्याग (नियंत्रण) पूर्वक एवं विचार करके बोले; इस प्रकार (पांच भावनाओं द्वारा) सत्यव्रत को सुदृढ़ करे। $ $ $ $ $ $ 19711 $ $ $ भासमाणो ण भासेजा णो य वम्फेज्ज मम्मयं । माइट्ठाणं विवजेज्जा अणुवीइ वियागरे ॥ (सू.कृ. 1/9/25) बोलता हुआ भी न बोलता-सा रहे, मर्मवेधी वचन न बोले, (बोलने में) मायास्थान का वर्जन करे, सोच कर बोले। $ $ $ % $ $ $ % E EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE [जैन संस्कृति खण्ड/390
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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