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________________ TEEEEEEEEEEEEEE', thathayामाकाRATIONSIORAIनजनजनमचनजान (962) महुत्तदुक्खा हु हवंति कंटया, अओमया, ते वि तओ सुउद्धरा। वाया दुरुत्ताणि दुरुद्धराणि, वेराणुबंधीणि महब्भयाणि ॥ (7) (दशवै. 9/498) लोहमय कांटे तो केवल मुहूर्त्तभर (अल्पकाल तक) दुःखदायी होते हैं, फिर वे भी (जिस अंग में लगे हैं) उस (अंग) में से सुखपूर्वक निकाले जा सकते हैं। किन्तु वाणी से 卐 निकले हुए दुर्वचनरूपी कांटें कठिनता से निकाले जा सकने वाले, वैर की परम्परा बढ़ाने के वाले और महाभयकारी होते हैं। (7) {963) से भिक्खू वा इमाई वइ-आयाराई सोच्चा णिसम्म इमाई अणायाराई है। अणायरियपुव्वाइं जाणेजा- जे कोहा वा वायं विठंजंति, जे माणा वा वायं विउंजंति, म जे मायाए वा वायं विउंजंति, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाणतो वा फरुसं वदंति, ॥ 卐 अजाणतो वा फरुसं वयंति। सव्वं चेयं सावजं वजेजा विवेगमायाए- धुवं चेयं ॥ जाणेजा, अधुवं चेयं जाणेज्जा, असणं वा लभिय, णो लभिय, भुंजिय, णो भुंजिय, अदुवा आगतो अदुवा णो आगतो, अदुवा एति, अदुवा णो एति, अदुवा एहिति, अदुवा णो एहिति, एत्थ वि आगते, एत्थ वि णो आगते, एत्थ वि एति, एत्थ वि णो 卐 एति, एत्थ वि एहिति, एत्थ वि णो एहिति। (आचा. 2/4/1 सू. 520) संयमशील साधु या साध्वी इन वचन (भाषा) के आचारों को सुन कर, हृदयंगम म करके, पूर्व-मुनियों द्वारा अनाचरित भाषा-सम्बन्धी अनाचारों को जाने। (जैसे कि) जो : क्रोध से वाणी का प्रयोग करते हैं, जो अभिमानपूर्वक वाणी का प्रयोग करते हैं, जो छल कपट सहित भाषा बोलते हैं, अथवा जो लोभ से प्रेरित होकर वाणी का प्रयोग करते हैं, म जानबूझ कर कठोर बोलते हैं, या अनजाने में कठोर वचन कह देते हैं- ये सब भाषाएं ॥ जा सावध (स-पाप) हैं, साधु के लिए वर्जनीय हैं। विवेक अपना कर साधु इस प्रकार की है सावद्य एवं अनाचरणीय भाषाओं का त्याग करे।वह साधु या साध्वी ध्रुव (भविष्यत्कालीन वृष्टि आदि के विषय में निश्चयात्मक) भाषा को जान कर उसका त्याग करे, अध्रुव " (अनिश्चयात्मक) भाषा को भी जान कर उसका त्याग करे। वह अशनादि चतुर्विध आहार 卐 FREETHERRENESEEEEEEEEEEEEEEEERS अहिंसा-विश्वकोश।3851
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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