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________________ NEUEUEUELELELELELELELELELELELELEUCLCLCLCLCLCLELELELELCLCLELELE __ (सत्य आदि महाव्रत) 18901 व्यलीकभाषणेन दुःखं प्रतिपद्यन्ते जीवा इति मत्वा दयावतो यत्सत्याभिधानं 卐 तद्वितीयं व्रतम्। (भग. आ. विजयो. 423) झूठ बोलने से जीव दुःखी होते हैं- ऐसा मान कर दयालु पुरुष का सत्य बोलना दूसरा 'सत्य' व्रत है। {891) ममेदमितिसंकल्पोपनीतद्रव्यवियोगे दु:खिता भवन्ति इति तद्दयया अदत्तस्यादानाद्विरमणं तृतीयं व्रतम्। . (भग. आ. विजयो. 423) जिसमें 'यह मेरा है' ऐसा संकल्प है, उस द्रव्य के चले जाने पर जीव दुःखी होते हैं। है इसलिए उस पर दया करके बिना दी हुई वस्तु के ग्रहण से विरत होना तीसरा 'अचौर्य' व्रत है। {892) सर्षपपूर्णायां नाल्यां तप्तायसशलाकाप्रवेशनवद्योनिद्वारस्थानेकजीवपीडा साधनप्रवेशेनेति तद्बाधापरिहारार्थं तीव्रो रागाभिनिवेशः कर्मबन्धस्य महतो मूलम् ॥ 卐 इति ज्ञात्वा श्रद्धावतः मैथुनाद्विरमणं चतुर्थं व्रतम्। (भग. आ. विजयो. 423) [भावार्थ] जैसे तपायी हुई लोहे की छड़ सरसों से पूर्ण नली में जाकर उन सरसों को भून देती है, उसी तरह अब्रह्मचर्य-सेवन में अनेक जीवों का विनाश होता है। उन जीवों 卐 को पीड़ा न हो- इस दृष्टि से, राग के तीव्र अभिनिवेश के कारण महान् कर्मबन्ध होता है-' जो यह जानते हुए श्रद्धापूर्वक अब्रह्मचर्य-सेवन से विरत होना चतुर्थ ब्रह्मचर्य व्रत है। 如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明 卐卐 {893) परिग्रहः षड्जीवनिकायपीडाया मूलं मूर्छानिमित्तं चेति सकलग्रन्थत्यागो भवति इति पञ्चमं व्रतम्। (भग. आ. विजयो. 423) परिग्रह छहकाय के जीवों को पीड़ा पहुंचाने में मूल कारण है और ममत्वभाव की . उत्पत्ति में निमित्त है- ऐसा जान कर समस्त परिग्रह का त्याग पांचवां 'अपरिग्रह' व्रत है। EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN [जैन संस्कृति खण्ड/360 R
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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