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________________ הלהבהבהבהבהבהבהבהבהבהבהבהבהבהבתכתבתכתככתכתבכתבתכתבתבכתבתכתבו तहेव हिंसं अलियं चोज्ज अबम्भसेवणं। इच्छाकामं च लोभं च संजओ परिवजए॥ (उत्त. 35/3) संयत भिक्षु हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्मचर्य, इच्छा-काम (अप्राप्त वस्तु की आकांक्षा) और लोभ से दूर रहे। 18701 अहिंस सच्चं च अतेणगं च तत्तो य बम्भं अपरिग्गहं च। पडिवज्जिया पंच महव्वयाणि चरिज धम्मं जिणदेसियं विऊ॥ __ (उत्त. 21/12) विद्वान् मुनि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अरिग्रह-इन पांच महाव्रतों को 卐 स्वीकार करके जिनोपदिष्ट धर्म का आचरण करे। (हिंसादि की निवृत्ति हेतु गहाव्रतों का धारण) 明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 出品~~弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱か {871) व्रतानां प्रत्यनीका ये दोषा हिंसानृतादयः। . (आ. पु. 21/91) हिंसा, असत्य-भाषण आदि- ये व्रतों के विरोधी दोष हैं। {872 हिंसादिदुवाराणि वि दढवदफलहेहिं रुंभंति॥ (भग. आ. 1829) हिंसा आदि आस्रव द्वारों को दृढ़ व्रतरूपी अर्गलाओं से रोका जाता है। {873} हिंसायामनृते स्तेये मैथुने च परिग्रहे। विरतिव्रतमित्युक्तं सर्वसत्त्वानुकम्पकैः॥ ____ (ज्ञा. 8/6) हिंसा, अनृत, चोरी, मैथुन और परिग्रह- इन पापों से विरति या त्यागभाव होना ही व्रत' है- ऐसा समस्त जीवों-पर दयालु मुनियों का कथन है। REYENTREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER [जैन संस्कृति खण्ड/354
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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