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EEYEFFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE O अहिराक भावना की अखण्डता के साथः साधु का समाधिगरण
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{865) दुविहं पि विदित्ता णं बुद्धा धम्मस्स पारगा। अणुपुव्वीए संखाए आरंभाए तिउट्टति ॥ 17 ॥ कसाए पयणुए किच्चा अप्पाहारो तितिक्खए। अह भिक्खू गिलाएज्जा आहारस्सेव अंतियं ॥18॥ जीवियं णाभिकंजा रणं णो वि पत्थए। दुहतो वि ण सज्जेज्जा जीविते मरणे तहा ॥ 19॥ मज्झत्थो णिजरापेही समाहिमणुपालए। अंतो बहिं वियोसज अज्झत्थं सुद्धमेसए ॥ 20॥ जं किंचुवक्कम जाणे आउखेंमस्स अप्पणो। तस्सेव अंतरद्धाए खिप्पं सिक्खेज्ज पंडिते ॥ 21 ॥ गामे अदुवा रणे थंडिलं पडिलेहिया। अप्पपाणं तु विण्णाय तणाई संथरे मुणी॥ 22 ॥ अणाहारो तुवट्टेज्जा पुट्ठो तत्थ हियासए। णातिवेलं उवचरे माणुस्सेहिं वि पुट्ठवं ॥ 23 ॥ संसप्पगा य जे पाणाा जे य उड्ढमहेचरा। भुंजते मंससोणियं ण छणे ण पमज्जए॥ 24॥ पाणा देहं विहिंसंति ठाणातो ण वि उब्भमे। आसवेहिं विवित्तेहिं तिप्पमाणोऽधियासए॥ 25 ॥ गंथेहिं विवित्तेहिं आयुकालस्स पारए। पग्गहिततरगं चेतं दवियस्स वियाणतो ॥ 26 ॥
(आचा. 1/8/8 सू. 230-39) ___ वे धर्म के पारगामी प्रबुद्ध भिक्षु दोनों प्रकार से (शरीर उपकरण आदि बाह्य पदार्थों 卐 तथा रागादि आन्तरिक विकारों की) हेयता का अनुभव करके (प्रव्रज्या आदि के) क्रम से EE (चल रहे संयमी शरीर को) विमोक्ष का अवसर जान कर आरंभ (बाह्य प्रवृत्ति) से सम्बन्ध
तोड़ लेते हैं। (17)
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अहिंसा-विश्वकोश/3511