SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 356
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ FREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEP {797} घोरान्धकाररुद्धाक्षैः पतन्तो यत्र जन्तवः । नैव भोज्ये निरीक्ष्यन्ते, तत्र भुंजीत को निशि ॥ ___ (है. योग. 3/49) घोर अंधेरे में आंखें काम नहीं करती; तेल, घी, छाछ आदि भोज्य पदार्थों में कोई चींटी, कीड़ा, मक्खी आदि जीव पड़ जाय तो वे आंखों से दिखाई नहीं देते। ऐसे में कौन समझदार आदमी रात को भोजन करेगा? 卐卐卐卐卐卐卐卐卐99999 {798} हृन्नाभिपद्मसंकोचः चण्डरोचिरपायतः। अतो नक्तं न भोक्तव्यं सूक्ष्मजीवादनादपि॥ ___ (है. योग. 3/60) सूर्य के अस्त हो जाने पर शरीर-स्थित हृदय-कमल और नाभि-कमल सिकुड़ जाते हैं और उस भोजन के साथ सूक्ष्म जीव भी खाने में आ जाते हैं, इसलिए भी रात्रिॐ भोजन नहीं करना चाहिए। 的%%%%%%%%$%%%%%%%%%%%%}%%%%%%%%弱弱弱弱弱弱弱 {799) संसजज्जीवसंघातं भुंजाना निशिभोजनम् । राक्षसेभ्यो विशिष्यन्ते; मूढात्मानः कथं नु ते? ___ (है. योग. 3/61) जिस रात्रि-भोजन के करने में अनेक जीव-समूह आ कर भोजन में गिर जाते हैं, 卐 उस रात्रि-भोजन को करने वाले मूढ़ात्मा राक्षसों से बढ़ कर नहीं तो और क्या हैं? FO अहिंसा का विशिष्ट साधकः प्रतिमाधारी श्रावक {800) मूलफलशाकशाखा-करीरकन्दप्रसूनबीजानि । नामानि योऽत्ति सोऽयं, सचित्तविरतो दयामूर्तिः॥ (रत्नक. श्रा. 141) जो व्यक्ति अपक्च- कच्चे, अशुष्क, सचित्त (अंकुरोत्पत्तिकारक), जड़, फल, शाक, डाली, कोंपल, जमीकन्द, फूल और बीज वगैरह नहीं खाता, पानी तक गरम कर * पीता है, वह, सचित्तत्यागप्रतिमावान् कहलाता है। S EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE EEEEEEEEET [जैन संस्कृति खण्ड/328
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy