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________________ A MA FFFFFFFFFUSSES TO अहिंसक पशुओं का पालकः श्रावक-वर्ग ''''''''''' (711) सर्वानुपदिदेशासौ प्रजानां वृत्तिसिद्धये। उपायान् धर्मकामार्थान् साधनान्यपि पार्थिवः॥ पशुपाल्यं ततः प्रोक्तं गोमहिष्यादिसंग्रहम्। वर्जनं क्रूरसत्त्वानां सिंहादीनां यथायथम्॥ (ह. पु. 9/34,36) (राजा नाभिराय के पुत्र ऋषभदेव ने समस्त प्रजा को) आजीविका के निर्वाह के लिए सब उपाय तथा धर्म, अर्थ और कामरूप साधनों का उपदेश दिया था। (ऋषभदेव ने समस्त प्रजा को) यह भी बताया था कि गाय, भैंस आदि पशुओं का संग्रह तथा उनकी रक्षा म करनी चाहिए और सिंह आदिक दुष्ट जीवों का परित्याग करना चाहिए। हिंसात्मक आजीविका का त्यागः श्रावक के लिए अपेक्षित {712} इंगाली-वण-साडी-भाडी-फोडीसु वज्जए कम्म। वाणिजं चेव दंत-लक्ख-रस-केस-विसविसयं ॥ एवं खु जंतपीलणकम्मं निल्लंछणं च दवदाणं । सर-दह-तलायसोसं असईपोसं च वजिज्जा॥ (श्रा.प्र. 287-288) (उपभोग-परिभोग-परिणाम व्रत के विषय में जो कर्म विषयक 15 अतिचार कहे ॐ गए हैं, वे इस प्रकार हैं-) अंगार कर्म, वन कर्म, शकट कर्म, भाटक कर्म, स्फोटन कर्म, दंत वाणिज्य, लाक्षा वाणिज्य, रस वाणिज्य, के शवाणिज्य और विष विषयक वाणिज्य; इनका परित्याग करना चाहिए। इसी प्रकार यंत्र-पीड़न कर्म, निलांछन कर्म, दवदान, सर-द्रह-तडागशोषण और 卐 असतीपोष। भोगोपभोग परिमाण के व्रती को कर्म विषयक उक्त पंद्रह अतिचारों का भी की परित्याग करना चाहिए। Irrrrrrr-E-ELE-FIEDELETELELELEUDUDUDUDLELELELELELELDE R अहिंसा-विश्वकोश/2991
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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