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________________ EFFEEEEEEEEEEEEE ॐ अनुयोग के धारक परम हितैषी साधु- का घात कर डाला। उससे युगप्रधान के घात से- तीर्थ : का उच्छेद हो गया, जिससे अनेक आत्महितैषी जीवों का अत्यंत अनर्थ हुआ। इससे उन निवृत्तिवादियों के लिए दोष कैसे नहीं होता है? इस कारण प्राणवधनिवृत्ति नहीं करानी 卐 चाहिए। किंतु स्वयं ही समयोचित आलोचना को करके जिसमें किसी प्रकार का विरोध 卐 ॐ सम्भव न हो, ऐसा आचरण करना चाहिए। 1 [वादी अपने अभिमत को प्रस्तुत करता हुआ कहता है कि इस प्रकार से जो लोक का अहित होने वाला है, उसके संरक्षण की दृष्टि से किसी को प्राण-वध का प्रत्याख्यान नहीं कराना चाहिए। यदि कभी लोकहित की दृष्टि से किसी क्रूर प्राणी का घात भी करना पड़े तो उसे करके समयानुसार यथायोग्य आलोचनापूर्वक प्रायश्चित्त ग्रहण ज करके अपने को दोष से मुक्त करना ही उचित है।] (वादी के उक्त गत का निराकरण करते हुए कथन-) {701) किं वा तेणावहिओ कहिंचि अहिमाइणा न खजेजा। सो ता इहंपि दोसो कहं न होइ त्ति चिंतमिणं ॥ (श्रा.प्र. 170) ___अथवा उक्त आचार्य सिंह के द्वारा न मारा जा कर क्या किसी प्रकार-अंधेरी रात में प्रमाद के वश होकर-सर्प आदि के द्वारा नहीं खाया जा सकता है? यह भी सम्भव है। सिंह से बचाए जाने पर भी-कैसे दोष नहीं हो सकता है? सिंह से उसके बचाए जाने पर भी उपर्युक्त दोष संभव है। इस प्रकार वादी का उपर्युक्त कथन सोचनीय है-वह युक्तिसंगत ॥ 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明那 नहीं है। (702) सीहवहरक्खिओ सो उड्डाहं किंपि कह वि काऊणं। किं अप्पणो परस्स य न होइ अवगारहेउ ति॥ किं इय न तित्थहाणी किं वा वहिओ न गच्छई नरयं । सीहो किं वा सम्मं न पावई जीवमाणो उ॥ . 168 169) ज सिंह के वध से रक्षित वह युग-प्रधान क्या किसी परस्त्री-सेवनादिरूप निकृष्ट 卐 आचरण को किसी प्रकार से-क्लिष्ट कर्म के उदय से- करके अपने व अन्य के अपकार का EYESEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEFFER अहिंसा-विश्वकोश/293]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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