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FFFFFFFFFFFEEEEEEEEEEEEEEM 卐 है। इसके लिए नागरिक-वध की निवृत्ति का उदाहरण भी है- जैसे किसी ने यह नियम किया कि 'मैं किसी नागरिक 卐 का घात नहीं करूंगा।' ऐसा नियम करने पर यदि वह नगर से बाहर निकले हुए किसी नागरिक का वध करता है तो : ॐ जिस प्रकार उसका वह व्रत भंग हो जाता है, उसी प्रकार जिस श्रावक ने सामान्य से 'मैं त्रस जीवों का घात नहीं करूंगा' * इस प्रकार के व्रत को स्वीकार किया है, वह जब बस पर्याय को छोड़ कर स्थावर पर्याय को प्राप्त हुए उन त्रस जीवों के * का प्रयोजन के वश घात करता है, तब उसका भी वह व्रत भंग होता है। और यह असम्भव भी नहीं है, क्योंकि कुछ बस जीव मरण को प्राप्त होकर उस त्रस पर्याय से स्थावर पर्याय को प्राप्त हो सकते हैं। अत: सामान्य से उन त्रस जीवों के घात का व्रत कराना उचित नहीं है। तब किस प्रकार से विशेषण से विशेषित उन त्रस जीवों के घात का व्रत कराना उचित है । इसे स्पष्ट करता हुआ वादी कहता है कि 'भूत' शब्द से विशेषित त्रसभूत-वस पर्याय से अधिष्ठित-उन त्रसों के विघात का व्रत कराने पर त्रस पर्याय को छोड़ कर स्थावरों में उत्पन्न हुए उन जीवों का घात करने पर भी वह उसका स्वीकृत व्रत भंग होने वाला नहीं है। कारण यह कि तब वे त्रसभूत-त्रस पर्याय से अधिष्ठित नहीं रहे। इसके लिए वादी के द्वारा उदाहरण दिया गया है कि जिस प्रकार कोई मनुष्य क्षीरभूत गोरस का प्रत्याख्यान करके यदि दही का उपभोग करता है तो उसका वह व्रत भंग नहीं होता है। कारण यह कि गोरस के रूप में दोनों के समान होने पर भी दही क्षीरभूत नहीं रहा। यही अभिप्राय प्रकृत में समझना चाहिए।
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(वादी की शंका का प्रत्युत्तर)
{698) नागरगंमि वि गामाइसंकमे अवगयंमि तब्भावे । नत्थि हु वहे वि भंगो अणवगए किमिह गामेण ॥
__ (श्रा.प्र. 131) 卐 वादी के द्वारा दृष्टान्त रूप से उपस्थित किए गए नागरिक के ग्राम आदि में पहुंचने म पर यदि उसकी नागरिकता नष्ट हो जाती है, तो फिर उसके वध में भी व्रत भंग होने वाला 卐 नहीं है और यदि वहां भी उसकी नागरिकता बनी रहती है तो फिर ग्राम से क्या प्रयोजन सिद्ध है
होता है? कुछ भी नहीं।
1 [वादी ने नागरिक का दृष्टान्त देते हुए कहा था कि जिस प्रकार नगर से बाहर ग्राम आदि में गए हुए 卐 नागरिक का वध करने पर नागरिक-वध का प्रत्याख्यान करने वाले का व्रत भंग होता है, उसी प्रकार मरण को प्राप्त卐 卐 होकर उस पर्याय से स्थावर पर्याय को प्राप्त हुए त्रस जीवों का वध करने पर त्रस-वध का प्रत्याख्यान करना चाहिए, 卐 卐न कि सामान्य रूप से। इस पर यहां वादी से पूछा गया है कि नगर के बाहर जाने पर उसकी नागरिकता नष्ट होती है卐 " या तदवस्थ बनी रहती है? यदि वह नष्ट हो जाती है, तब तो उसका वहां वध करने पर भी उसका वह नागरिक-वध卐 卐 का व्रत भंग नहीं होता है, क्योंकि वह उस समय नागरिक नहीं रहा- उसकी नागरिकता वहां वादी के अभिप्रायानुसार卐
समाप्त हो जाती है। इस पर यदि यह कहा जाए कि उसकी नागरिकता वहां भी बनी रहती है, तो फिर गांव में जाने y:
के निर्देश से क्या लाभ है, क्योंकि नागरिकता के वहां भी तदवस्थ रहने से वह वहां भी उसके लिए अवध्य है। इस " प्रकार वादी के द्वारा उपन्यस्त वह नागरिक-वध का दृष्टान्त यहां लागू नहीं होता।] F FFFFFFFFFFFFFFFFFFF
अहिंसा-विश्वकोश!2911