SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 明$$ 卐))) )) ) ))))) ))) {667) हिंसानृतचौर्येभ्यो, मैथुनसेवापरिग्रहाभ्यां च। पापप्रणालिकाभ्यो, विरतिः संज्ञस्य चारित्रम्॥ (रत्नक. श्रा. 49) ___ पाप (अशुभास्रव) के कारण हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह -इन पांचों 卐 पापों का एकदेश या सर्वथा त्याग करना सम्यक्चारित्र कहलाता है। $$ $$ $ $ $$ {668) प्राणातिपातवितथ-व्याहारस्तेयकाममूर्छ भ्यः । स्थूलेभ्यः पापेभ्यो, व्युपरमणमणुव्रतं भवति ॥ ___(रत्नक. श्रा. 52) म स्थूल हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह -इन पांचों पापों का एकदेश त्याग अणुव्रत कहलाता है। इन पांचों के त्याग से ही पांच अणुव्रत होते हैं। $$ $$ $ (669) $$ $ $$ पंच अणुव्वयाई, तं जहा 1 थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, 2 थूलाओ 卐 मुसावायाओ वेरमणं, 3 थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, 4 सदारसंतोसे, 59 卐 इच्छापरिमाणे। (औप. 57) 5 अणुव्रत इस प्रकार हैं:- 1. स्थूल प्राणातिपात विरति- त्रस जीव की संकल्पपूर्वक ) ॐ की जाने वाली हिंसा से निवृत्त होना, 2. स्थूल मृषावाद से निवृत्त होना, 3. स्थूल अदत्तादान से निवृत्त होना, 4. स्वदार-संतोष- अपनी परिणीता पत्नी तक सहवास की सीमा, 5.4 म इच्छा- परिग्रह की इच्छा का परिमाण या मर्यादीकरण । $$ $ $$ $ {670) $$ $ महाव्रतं भवेत् कृत्स्नहिंसाद्यागोविवर्जितम्। विरतिः स्थूलहिंसादिदोषेभ्योऽणुव्रतं मतम् ॥ (आ. पु. 39/4) सूक्ष्म अथवा स्थूल-सभी प्रकार के हिंसादि पापों का त्याग करना 'महाव्रत' कहलाता 卐 卐 है और स्थूल हिंसादि दोषों से निवृत्त होने को अणुव्रत कहते हैं। $$ 听听听听 [जैन संस्कृति खण्ड/278
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy