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________________ FO हिंसा-दोष से सम्पृक्तः अनेक अभक्ष्य पदार्थ {642) अनेकजन्तुसंघात-निघातात् समुद्भवम्। जुगुप्सनीयं लालावत् कः स्वा दयति माक्षिकम्? ॥ (है. योग. 3/36) अनेक जंतु-समूह के विनाश से तैयार हुए और मुंह से टपकने वाली लार के समान घिनौने मक्खी के मुख की लार से बने हुए शहद को कौन विवेकी पुरुष चाटेगा? (उपलक्षण से यहां भौरे आदि का मधु भी समझ लेना चाहिए।) ~~~~~~叫~~~~~~~~~~弱弱弱弱弱弱弱弱~~~~~~~~~~~~ {643 एकैक-कुसुमक्रोड़ाद् रसमापीय माक्षिकाः। यद्वमन्ति मधूच्छिष्टं तदश्नन्ति न धार्मिकाः॥ (है. योग. 3/38) एक-एक फूल पर बैठ कर उसके मकरन्द रस को पी कर मधुमक्खियां उसका वमन करती हैं, उस वमन किए हुए उच्छिष्ट मधु (शहद) का सेवन धार्मिक 卐 पुरुष नहीं करते। 明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 (644) अप्यौषधकृते जग्धं मधु श्वभ्रनिबंधनम् । भक्षितः प्राणनाशाय कालकूटकणोऽपि हि।। (है. योग. 3/39) रस-लोलुपता की बात तो दूर रही, औषध के रूप में भी रोगनिवारणार्थ मधुभक्षण पतन के गर्त में डालने का कारण है। क्योंकि प्रमादवश या जीने की इच्छा से कालकूटविष का जरा-सा कण भी खाने पर वह प्राणनाशक होता है। ALELELELELELELELELELELELELELELELELELCLCLCLCLCLCLCLELLELELELELE अहिंसा-विश्वकोश/2711
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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