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________________ 卐卐 FREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE {508) जलयर-थलयर-सणप्फ-योरग-खहयर-संडासतुंड-जीवोवग्धायजीवी सण्णी) म य असण्णिणो पज्जत्ते अपज्जत्ते य असुभलेस्स-परिणामे एए अण्णे य एवमाई . करेंति पाणाइवायकरणं। पावा पावाभिगमा पावरुई पाणवहकयरई पाणवहरूवाणुट्ठाणा पाणवहकहासु 卐 अभिरमंता तुट्ठा पांव करेत्तु होंति य बहुप्पगारं। (प्रश्न. 1/1/सू.21) ये पूर्वोक्त विविध देशों और जातियों के लोग तथा इनके अतिरिक्त अन्य जातीय 卐 और अन्य देशीय लोग भी, जो अशुभ लेश्या-परिणाम वाले हैं, वे जलचर, स्थलचर, 卐 सनखपद, उरग, नभश्चर, संडासी जैसी चोंच वाले आदि जीवों का घात करके अपनी । आजीविका चलाते हैं। वे संज्ञी, असंज्ञी, पर्याप्त और अपर्याप्त जीवों का हनन करते हैं। वे पापी जन पाप को ही उपादेय मानते हैं। पाप में ही उनकी रुचि-प्रीति होती है। 卐 वे प्राणियों का घात करके प्रसन्नता अनुभव करते हैं। उनका अनुष्ठान-कर्त्तव्य प्राणवध करना ) ज ही होता है। प्राणियों की हिंसा की कथा-वार्ता में ही वे आनन्द मानते हैं। वे अनेक प्रकार के पापों का आचरण करके संतोष अनुभव करते हैं। iOहिंसा की प्रवृत्तिः प्रायः स्वार्थी व अज्ञानियों में 明明明明明明明明明明明 {509) तं च पुण करेंति केइ पावा असंजया अणिहुयपरिणामदुप्पयोगा पाणवहं भयंकरं बहुविहं बहुप्पगारं परदुक्खुप्पायणपसत्ता इमेहिं तसथावरे हिं जीवेहिं पडिणिविट्ठा। (प्रश्न. 1/1/सू.4) कितने ही पातकी, संयमविहीन, तपश्चर्या के अनुष्ठान से रहित, अनुपशान्त परिणाम वाले एवं जिनके मन, वचन और काय का व्यापार दुष्ट है, जो अन्य प्राणियों को पीड़ा 卐 पहुंचाने में आसक्त रहते हैं तथा त्रस और स्थावर जीवों की रक्षा न करने के कारण वस्तुतः ॥ जो उनके प्रति द्वेषभाव वाले हैं, वे अनेक प्रकारों से, विविध भेद-प्रभेदों से भयंकर प्राणवध-हिंसा किया करते हैं। FFFFFFFFFFFFEREFE N अहिंसा-विश्वकोश/221)
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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